Apni saheli nu patar rahi kisse itehasik sathan di yatara da varnan kro ate uss di mahatatacbare dso punjabi letter
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भारत में सदैव नारी को उच्च स्थान दिया गया है। समुत्कर्ष और नि.श्रेयस के लिए आधारभूत ‘श्री’, ‘ज्ञान’ तथा ‘शौर्य’ की अधिष्ठात्री नारी रूपों में प्रगट देवियों को ही माना गया है। आदिकाल से ही हमारे देश में नारी की पूजा होती आ रही है। यहाँ ‘अर्द्धनारीश्वर’ का आदर्श रहा है। आज भी आदर्श भारतीय नारी में तीनों देवियाँ विद्यमान हैं। अपनी संतान को संस्कार देते समय उसका ‘सरस्वती’ रूप सामने आता है। गृह प्रबन्धन की कुशलता में ‘लक्ष्मी’ का रूप तथा दुष्टों के अन्याय का प्रतिकार करते समय ‘दुर्गा’ का रूप प्रगट हो जाता है। अत. किसी भी मंगलकार्य को नारी की अनुपस्थिति में अपूर्ण माना गया। पुरुष यज्ञ करें, दान करे, राजसिंहासन पर बैठें या अन्य कोई श्रेष्ठ कर्म करे तो ‘पत्नी’ का साथ होना अनिवार्य माना गया।
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