Hindi, asked by savitajaiswar2780, 11 months ago

apradh ki samapti ke liye mrityu dand aavashyak ha 100 words essay.

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Answered by ganeshhedaoo14
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कार्यालय संवाददाता, हाजीपुर

मृत्युदंड मानवाधिकार का हनन नहीं है। अपराधी के लिए दंड का स्वरूप ऐसा हो जिससे समाज में अपराध की पुनरावृत्ति न हो सके। अपराध को समाप्त करने के लिए दंड अनिवार्य होना चाहिए।

स्थानीय इंटरमीडिएट वीमेंस कालेज में 'द टेम्पुल आफ अंडरस्टैंडिंग' के तत्वावधान में 'क्या मृत्युदंड मानवाधिकार का हनन है?' विषय पर आयोजित सेमीनार में छात्रा शिवानी भारद्वाज ने जब अपने उक्त विचार प्रकट किये तो उपस्थित बुद्धिजीवियों ने इसकी जमकर सराहना की। दूसरी तरफ छात्रा शारदा सलोनी ने मृत्युदंड को मानवाधिकार का हनन बताते हुए कहा कि अपराधियों में अपराध करने की प्रवृति जन्मजात नहीं होती है बल्कि हमारी दंड व्यवस्था उसे अपराधी बनाती है।

कालेज की 12 छात्राओं के बीच काफी देर तक विचारों के आदान-प्रदान होने के बाद विषय पर अच्छी पकड़ और बेहतर प्रस्तुति के जरिए सेमिनार में प्रथम स्थान पर शिवानी भारद्वाज और शारदा सलोनी ने संयुक्त रूप से कब्जा जमा लिया।

सेमीनार में काजल उपाध्याय, शालिनी सिंह, चुनमुन पान्डे, सोनिका कुमारी, रानी राय, शालिनी कुमारी, रूपा कुमारी सुमन, निदा फातिमा, पूजा, प्रिया सिंह ने शिरकत की। जिनमें से दूसरे स्थान पर रानी राय, तीसरे स्थान पर निदा फातिमा और काजल उपाध्याय रही जबकि चौथे स्थान पर पूजा सिंह रही छठा स्थान पर शालिनी कुमारी रही। शेष छात्राएं सांतवे स्थान पर रही।

सेमीनार में रानी राय ने कहा कि मृत्युदंड मानवाधिकार का हनन नहीं है। जब न्यायालय पूर्ण रूप से संतुष्ट हो जाता है कि अपराधी का जीना समाज के लिए खतरनाक है ऐसी ही परिस्थितियों में मृत्यु दंड की सजा दी जाती है।

निदा फातिमा ने मृत्युदंड को मानवाधिकार का हनन करार दिया। उन्होंने जियो और जीने दो के सिद्धांत की दुहाई देते हुए कहा कि बुद्ध के धर्म पद और कुरान दोनों में यह बात कही गई है कि सजा और मौत से सभी डरते हैं। ऐसे में जरूरी नहीं कि उन्हें मृत्युदंड ही दिया जाऐ। काजल उपाध्याय ने कहा कि मृत्युदंड मानवाधिकार का हनन नहीं है। पौराणिक कथाएं भी हमें यह सिखाती है कि जब पापी के पाप का अति होता है तब पापी का नाश होता है। शालिनी सिंह ने मृत्युदंड की वकालत करते हुए कहा कि हर किसी को जीने का अधिकार है।

सोनिका ने मृत्युदंड को मानवाधिकार का हनन बताते हुए कहा कि उसे मृत्युदंड न देकर काला पानी की सजा दे। चुनमुन पान्डे का कहना है कि यदि कोई अपराधी जघन्यतम अपराध करे तो उसका सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए। प्रिया सिंह ने कहा कि अपराधियों को फांसी की सजा देकर समाज से हटा देना चाहिए। वहीं सुमन ने कहा कि अपराधियों को मृत्युदंड न देकर उनका मनोचिकित्सक द्वारा विचारों में परिवर्तन, कर्मयोत्र की शिक्षा देकर सुधार लाया जा सकता है।

शालिनी कुमारी का कहना है कि संविधान में ऐसे नियम का प्रावधान किया जाए जिससे कि जीवन सुरक्षित रहते हुए दंड दिया जा सके।

इस अवसर पर दटेम्पुल आफ अंडरस्टैन्डिंग के जेनरल सेकरेट्री व भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी यूएसपी ठाकुर ने सेमिनार की सफलता पर हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि एक नारी के शिक्षित होने से पूरा समाज शिक्षित होता है। कालेज की प्राचार्य डा. मीरा सिंह के गुरूदेव रह चुके डा. प्रो. इन्द्रदेव नारायण सिन्हा ने अधिकार के साथ-साथ कर्तव्य पर ध्यान देने की बात कही। उन्होंने लाइव सिक्युरिटी और लिवर्टी पर जोर देते हुए कहा कि व्यक्ति के विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिए। इनके अनुसार भले ही सौ अपराधी छूट जाए पर एक भी निर्दोष को सजा न मिले। प्राचार्य डा. मीरा सिंह ने इस आयोजन के लिए 'द टेम्पुल आफ अंडरस्टैंडिंग' के सभी सदस्यों के प्रति साधुवाद प्रकट किया। वहीं डा. प्रो.आईएन सिन्हा ने प्राचार्य डा. मीरा सिंह को मोमेन्टो प्रदान कर सम्मानित किया।

धन्यवाद ज्ञापन श्री रंधीर कुमार सिंह, निदेशक, कस्तुरबा गांधी विद्यालय द्वारा किया गया। मंच संचालन नृत्य प्रशिक्षिका सुश्री दीपस्मिता ने बड़े ही सलीकेदार ढंग से किया गया।

इस अवसर पर सैकड़ों की संख्या में छात्राओं समेत, शिक्षक, शिक्षकेतर कर्मचारी उपस्थित थे। इस अवसर पर श्री चंदेश्वर प्रसाद सिंह अधिवक्ता, श्री मनोज कुमार सिंह, अधिवक्ता सह अध्यक्ष जिला बाल कल्याण समिति, पत्रकार श्री सुरेन्द्र मानपुरी और राजेश कुमार ठाकुर ने अपने-अपने विचार प्रकट किये।

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