Hindi, asked by singhmansingh839, 14 days ago

अरे इन दोहुन राह न पाई।
हिंदू अपनी करै बड़ाई गागर छुवन न देई।
बेस्या के पायन-तर सोवै यह देखो हिंदुआई।
मुसलमान के पीर-औलिया मुर्गी मुगां खाई।
खाला केरी बेटी ब्याहै घरहिं में करै सगाई।
बाहर से इक मुर्दा लाए धोय-धाय चढ़वाई।
सब सखियाँ मिलि जेंवन बैठी घर-भर करै बड़ाई।
हिंदुन की हिंदुवाई देखी तुरकन की तुरकाई।
कहैं कबीर सुनों भाई साधो कौन राह है जाई।।​

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Answered by rajuramawat1
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Answer:

कबीर दास जी ने कहा है की हिंदू अपनी बड़े करते हैं प्रशंसा करते हैं और मुसलमान अपनी प्रशंसा करते हैं बड़े करते हैं हिंदू वेश्या के पैरों तले सोते हैं और अपनी हिंदू ही बताते हैं वही मुसलमान पीर औलिया को मानते हैं और मुर्गा मुर्गी खाते हैं मुसलमान के घर में अपनी खाला यानी मौसी की बेटी से भी शादी कर लेते हैं बाहर से मुर्दा लाई अर्थात एक पत्थर की मूरत जिसे धोकर उसी पूजा करते हैं और सभी सहेलियां आपस में बैठकर एक दूसरे की चुगली करते रहते है कबीर दास इन कहां है कि मैं नहीं हिंदुओं के हिंदूवाई और तुरकन की तुरकाई देख ली ही ही, कबीर दास जी ने कहां हैं कौन किस राह पर चल रहा है उनको भी नहीं पता

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