अरुणाचल प्रदेश और मेघालय के खानपान के विषय में एक अनुच्छेद लिखिए और यह भी बताइए कि वहा
के लोग खाने में अधिकतर मछलियों का प्रयोग क्यों करते हैं। अनुच्छेद 80 से 100 शब्दों का होना चाहिए।
Answers
Explanation:
बहुत से मनुष्य सोच सोच कर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, तब हमारे विपरीत अपनी सफलता को अपने हाथों पीछे धकेल देते हैं| उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बहुत से मनुष्य सोच सोच कर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, तब हमारे विपरीत अपनी सफलता को अपने हाथों पीछे धकेल देते हैं| उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता और विजय कहां? यदि हमारा मन संका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी बहुत से मनुष्य सोच सोच कर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, तब हमारे विपरीत अपनी सफलता को अपने हाथों पीछे धकेल देते हैं| उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता और विजय कहां? यदि हमारा मन संका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही बहुत से मनुष्य सोच सोच कर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, तब हमारे विपरीत अपनी सफलता को अपने हाथों पीछे धकेल देते हैं| उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता और विजय कहां? यदि हमारा मन संका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही होगा, क्योंकि सफलता की, विजय की, उन्नति को कुंजी तो अभी चल श्रद्धा ही है , क्योंकि सफलताबहुत से मनुष्य सोच सोच कर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, तब हमारे विपरीत अपनी सफलता को अपने हाथों पीछे धकेल देते हैं| उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता और बहुत से मनुष्य सोच सोच कर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, तब हमारे विपरीत अपनी सफलता को अपने हाथों पीछे धकेल देते हैं| उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता और विजय कहां? यदि हमारा मन संका बहुत से मनुष्य सोच सोच कर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, तब हमारे विपरीत अपनी सफलता को अपने हाथों पीछे धकेल देते हैं| उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता और विजय कहां? यदि हमारा मन संका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही होगा, क्योंकि सफलता की, बहुत से मनुष्य सोच सोच कर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, तब हमारे विपरीत अपनी सफलता को अपने हाथों पीछे धकेल देते हैं| उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता और विजय कहां? यदि हमारा मन संका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का बहुत से मनुष्य सोच सोच कर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, तब हमारे विपरीत अपनी सफलता को अपने हाथों पीछे धकेल देते हैं| उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता और विजय कहां? यदि हमारा मन संका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही होगा, क्योंकि सफलता की, विजय की, उन्नति को कुंजी तो अभी चल श्रद्धा ही है भी निराशाजनक ही होगा, क्योंकि सफलता की, विजय की, उन्नति को कुंजी तो अभी चल श्रद्धा ही है की, उन्नति को कुंजी तो अभी चल श्रद्धा ही है निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही होगा, क्योंकि सफलता की, विजय की, उन्नति को कुंजी तो अभी चल श्रद्धा ही है कहां? यदि हमारा मन संका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही होगा, क्योंकि सफलता की, विजय की, उन्नति को कुंजी तो अभी चल श्रद्धा ही है की, विजय की, उन्नति को कुंजी तो अभी चल श्रद्धा ही है ही होगा, क्योंकि सफलता की, विजय की, उन्नति को कुंजी तो अभी चल श्रद्धा ही है ही नहीं तो सफलता और विजय कहां? यदि हमारा मन संका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही होगा, क्योंकि सफलता की, विजय की, उन्नति को कुंजी तो अभी चल श्रद्धा ही है