अरुण तिलक दिये भाल ' में ' भाल ' का शाब्दिक अर्थ क्या है
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अरुण तिलक दिये गये ‘भाल’ में ‘भाल’ का शाब्दिक अर्थ है...
मस्तक यानि माथा
बसो म्हारे नैनन में नंदलाल ।
मोर मुगट मकराकृत कुंडल, अरूण तिलक सोहै भाल ।
ये मीराबाई के दोहे की पंक्तियां है, जिसमें वे कहती है कि हे, कृष्ण! मेरे मन में बस जाओ, आपके सिर पर मोरपंख का मुकुट, कानों में कुंडल और माथे पर सुंदर तिलक शोभायमान हो रहा है।
स्पष्ट है यहां पर ‘भाल’ का अर्थ मस्तक यानी माथा है, इस तरह बाल का शाब्दिक अर्थ माथा यानि मस्तक होगा।
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Answer:
भाल का शाब्दिक अर्थ माथा है।
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