Hindi, asked by vermamprakash4, 1 month ago

अरुण यह मधुमय देश हमारा
जहां पहुंच अनजान सीख शिक्षित को मलता एक सहारा
निम्नलिखित पद्य खंड का संदर्भ सहित व्याख्या लिखिए ​

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Answered by TanRac
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Answer:

bhai kyo tum itne point bdha ke question puchte ho ham lo point ke lalchi hai

Answered by iambest5359
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Explanation:

जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। छायावाद के आलोक स्तंभों में प्रसाद का विशिष्ट स्थान है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रसाद जी ने कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध सभी विधाओं में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। प्रसाद में भावना, विचार और शैली तीनों की पूर्ण प्रौढ़ता मिलती है, जो विश्व के बहुत कम कवियों में संभव है। व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों ही दृष्टियों से प्रसाद और उनका काव्य अद्वितीय है।

प्रभाकर श्रोत्रिय कहते हैं कि “बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रसाद शीर्षस्थ लेखकों में से हैं। वे एक पारदर्शी लेखक थे, कई बार उन्होंने स्वयं का अतिक्रमण किया। वह भारत की सच्ची संस्कृति के पक्षधर थे। वे मानवीय प्रेम और जीवन मूल्य की रक्षा करना चाहते थे, उन्हें पाखंड से घृणा थी। समाज के भीतर सद्भाव की स्थापना, नारी- उत्कर्ष, राष्ट्रप्रेम, करुणा का राज्य, उनका पक्ष था। सत्य की खोज के उपासक थे- जयशंकर प्रसाद।”

(आधुनिक हिंदी साहित्य के कीर्ति स्तंभ पृष्ठ 47)

यूं तो प्रसाद जी कवि रूप में अधिक प्रतिष्ठित हुए हैं ‘प्रेमपथिक’, ‘झरना’, ‘आंसू’, ‘लहर’ और ‘कामायनी’ उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं। वहीं पर ‘कंकाल’, ‘तितली’, ‘इरावती’ उनके प्रमुख उपन्यास हैं। ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘आंधी’, ‘गुंडा’, ‘इंद्रजाल’ जैसी कहानियाँ, ‘काव्य और कला’ तथा अन्य निबंध उनकी गद्य कला के बेजोड़ नमूने हैं।

जयशंकर प्रसाद का आविर्भाव ऐसे समय हुआ, जब देश का राष्ट्रीय आंदोलन पनप रहा था। राष्ट्रीय और सांस्कृतिक चेतना की लहर जनमानस में फैल रही थी। इसके साथ ही सामाजिक विद्रूपता यह थी कि पाश्चात्य संस्कृति और सभ्यता का अंधानुकरण प्रारंभ हो गया था। भारतीय संस्कृति तिरस्कृत और पददलित हो रही थी। ऐसे समय में प्रसाद जी के लिए आर्य संस्कृति के उद्धारक तथा सांस्कृतिक जागरण के अधिष्ठाता के रूप में अपनी आवाज बुलंद करना आवश्यक हो गया था। इसके लिए उनके नाटक सशक्त माध्यम बने। इतिहास और कल्पना के योग से उन्होंने जो नाटक लिखे उनमें प्रेम और सौंदर्य के मधुर चित्र हैं। अतीत के माध्यम से आधुनिक समस्याओं का उन्होंने समाधान निकालने का सुंदर प्रयास किया है। देशभक्ति, राष्ट्रीयता साम्राज्यवादी शोषण का विरोध, जन जागरण और सामाजिक समानता की भावना, मानवीय संवेदना और मूल्यों की स्थापना इनकी रचनाओं का विशेषकर नाटकों का प्रमुख स्वर कहा जा सकता है।

व्यासमणि त्रिपाठी “हिंदी साहित्य के इतिहास” में कहते हैं-

“देशवासियों में आत्मगौरव, उत्साह, बल एवं प्रेरणा के संचार के लिए प्रसाद जी ने अतीत का गौरव गान किया इसके लिए उन्होंने भारतीय इतिहास और पुराणों में से महाभारत के बाद से लेकर सम्राट हर्षवर्धन तक का वह समय लिया जब विदेशी आक्रमणकारियों को परास्त कर भारतीय वीर अपने गौरव और गर्व की रक्षा कर रहे थे।””

इसी क्रम में डॉक्टर नगेंद्र भी कहते हैं “परतंत्र देश का लेखक यदि वर्तमान की क्षतिपूर्ति अपने गौरवमयी अतीत में करता है तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं।”

“चंद्रगुप्त प्रसाद द्वारा रचित एक ऐतिहासिक नाटक है जो 1931 ई. में लिखा गया। इसकी कथावस्तु सिकंदर के आक्रमण तथा मगध में नंद वंश के पराभव एवं चंद्रगुप्त मौर्य के राजा बनने की घटनाओं पर आधारित है। चंद्रगुप्त नाटक में चाणक्य, चंद्रगुप्त, अलका, सहरण जैसे पात्र हैं जो कर्मण्यता, साहस, देशभक्ति और स्वदेशानुराग की प्रेरणा देते हैं। प्रसाद जी ने साहित्यकार के दायित्व का निर्वहन करते हुए भारतीय इतिहास के उस कालखंड को नाटकीय घटनाक्रम से प्रस्तुत किया है जिसमें आचार्य चाणक्य के मार्गदर्शन में चंद्रगुप्त के नेतृत्व में भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरा। इस नाटक के गीत बहुत प्रसिद्ध हैं क्योंकि उनमें राष्ट्रीयता का स्वर सशक्त ढंग से मुखरित हुआ है। एक अलका का गीत और दूसरा कार्नेलिया का गीत।

अलका जनसाधारण को देश की रक्षा के लिए सन्नद्ध करती हुई गाती  है –

“हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।

स्वयं प्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती ।।

अमर्त्य वीर पुत्र हो दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो।

प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो बढ़े चलो ।।”

वहीं दूसरी ओर कार्नेलिया कहती है कि “मुझे इस देश से जन्मभूमि के समान स्नेह होता जा रहा है। यह स्वप्नों का देश है, यह त्याग और ज्ञान का पालना, यह प्रेम की रंगभूमि -भारत भूमि क्या भुलाई जा सकती है? कदापि नहीं। अन्य देश मनुष्यों की जन्मभूमि हैं, किंतु यह भारत मानवता की भूमि है।”

कार्नेलिया सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस की पुत्री है। सिंधु के किनारे गीक्र शिविर के पास वृक्ष के नीचे बैठी हुई कहती है-

“सिंधु का यह मनोहर तट जैसे मेरी आंँखों के सामने एक नया चित्रपट उपस्थित कर रहा है ।इस वातावरण से धीरे-धीरे उठती हुई प्रशांत स्निग्धता जैसे हृदय में घुस रही है। लंबी यात्रा करके जैसे मैं वहीं पहुंँच गई हूंँ। जहांँ के लिए चली थी। यह कितना निसर्ग सुंदर है। कितना रमणीय है। हांँ, वह आज वह भारतीय संगीत का पाठ देख लूँ भूल तो नहीं गई।”

तब वह यह  गीत गाती है –

“अरुण यह मधुमय देश हमारा।

जहाँ पहुंँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा”

भारत में सूर्योदय का दृश्य बड़ा ही रमणीय है। प्रातः काल सूर्य जब आकाश में उदित होता है तो चारों और अरुणिम अर्थात लालिमा युक्त प्रकाश फैल जाता है।

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