अर्णवः
पिता
पिता
अर्णवः
पितः, अस्माकम् उद्यानाद् जपाकुसुमम् आनीतं मया । कियन्त: सूक्ष्माः तस्य परागकणा: !
सूक्ष्मेक्षिकया पश्य, तेषां कणानां रचनाम् अपि द्रष्टुं शक्नोषि ! (अर्णवः तथा करोति ।)
किं दृष्टं त्वया?
पितः, अद्भुतम् एतत् । अत्र परागकणस्य सूक्ष्माणि
अङ्गानि दृश्यन्ते।
अर्णव, एतानि पुष्पस्य अङ्गानि त्वं सूक्ष्मेक्षिकया द्रष्टुं
शक्नोषि । परन्तु एतद् विश्वं परमाणुभ्यः निर्मितम्। ते
परमाणव: तु सूक्ष्मेक्षिकया अपि न दृश्यन्ते ।
पिता
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