अर्थ स्पष्ट कीजिए-
क. अपने अचल स्वतंत्र दुर्ग पर ,
सुनकर बैरी की बोली।
निकल पड़ी लेकर तलवारें,
जहाँ जवानों की टोली।
Answers
Explanation:
मुझे न जाना गंगासागर, मुझे न रामेश्वर, काशी।
मुझे न जाना गंगासागर, मुझे न रामेश्वर, काशी।तीर्थराज चित्तौङ देखने को मेरी आँखें प्यासी।
मुझे न जाना गंगासागर, मुझे न रामेश्वर, काशी।तीर्थराज चित्तौङ देखने को मेरी आँखें प्यासी।अपने अचल स्वतंत्र दुर्ग पर, सुनकर बैरी की बोली।
मुझे न जाना गंगासागर, मुझे न रामेश्वर, काशी।तीर्थराज चित्तौङ देखने को मेरी आँखें प्यासी।अपने अचल स्वतंत्र दुर्ग पर, सुनकर बैरी की बोली।निकल पङी लेकर तलवारें, जहाँ जवानों की टोली।
मुझे न जाना गंगासागर, मुझे न रामेश्वर, काशी।तीर्थराज चित्तौङ देखने को मेरी आँखें प्यासी।अपने अचल स्वतंत्र दुर्ग पर, सुनकर बैरी की बोली।निकल पङी लेकर तलवारें, जहाँ जवानों की टोली।जहाँ आन पर माँ-बहिनों की, जला-जला पावन होली।
मुझे न जाना गंगासागर, मुझे न रामेश्वर, काशी।तीर्थराज चित्तौङ देखने को मेरी आँखें प्यासी।अपने अचल स्वतंत्र दुर्ग पर, सुनकर बैरी की बोली।निकल पङी लेकर तलवारें, जहाँ जवानों की टोली।जहाँ आन पर माँ-बहिनों की, जला-जला पावन होली।वीर-मण्डली गर्वित स्वर से, जय माँ की जय जय बोली।
प्रसंग
यह पद्यांश श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित ’हल्दीघाटी’ महाकाव्य से संकलित ’पूजन’ कवितांश से लिया गया है। इसमें सन्यासी ने जो उत्तर दिया, उसी का वर्णन है।
व्याख्या
कवि वर्णन करता है कि सन्यासी ने कहा कि न तो मुझे गंगासागर तीर्थ जाना है, न मुझे रामेश्वर और काशी जाना है। मैं नये तीर्थराज चित्तौङ को देखना चाहता हूँ। उसी के दर्शनों के लिए मेरी आँखे लालायित है। वह तीर्थराज चित्तौङ ऐसा है, जो अपने अचल दुर्ग पर शत्रुओं की बोली या आक्रमण की आवाजें सुनकर जोश से भर गया था, जहाँ से शत्रुओं का मुकाबला करने के लिए जवानों की टोली तलवारें निकल पङी थी। जहाँ पर सतीत्व की रक्षा के लिए अपनी मान-मर्यादा की खातिर माताओं एवं बहिनों ने पवित्र जौहर की आग जलाकर आत्म-बलिदान किया था और जहाँ पर वीरों की मण्डली गर्व से भरे स्वर में हुँकार भरती हुई ’जय माँ, जय मातृभूमि’ की घोषण करती हुई शत्रुओं का सामना करने के लिए निकली थी।
विशेष-
1. कवि ने चित्तौङ दुर्ग के ऐतिहासिक गौरव को लक्ष्य कर उसे वन्दनीय तीर्थराज बताया है।
2. मेवाङ के शौर्य एवं बलिदान की व्यंजना की गई है।