'अर्थव्यवस्था के निजी क्षेत्रक एवं सार्वजनिक क्षेत्रक के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए।
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अर्थव्यवस्था उत्पादन, वितरण एवं खपत की एक सामाजिक व्यवस्था है। यह किसी देश या क्षेत्र विशेष में अर्थशास्त्र का गतिशील प्रतिबिंब है। इस शब्द का सबसे प्राचीन उल्लेख कौटिल्य द्वारा लिखित ग्रंथ अर्थशास्त्र में मिलता है। अर्थव्यवस्था दो शब्दों से मिलकर बना है यहाँ अर्थ का तात्पर्य है- मुद्रा अर्थात् धन और व्यवस्था का तात्पर्य है- एक स्थापित कार्यप्रणाली। अर्थव्यवस्था में कार्यप्रणाली के कई स्वरुप हैं और इन्हीं स्वरूपों के आधार पर अर्थव्यवस्था का आयोजन एवं नियोजन प्रतिस्थापित होता है। मुख्यतः अर्थव्यवस्था तीन प्रकार की होती है- समाजवादी, पूंजीवादी और मिश्रित। समाजवादी अर्थव्यवस्था में राज्य का अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप होता है, इसके अतिरिक्त मिश्रित अर्थव्यवस्था में राज्य का हस्तक्षेप सीमित तथा पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में राज्य का अर्थव्यवस्था में अत्यल्प हस्तक्षेप होता है। अर्थव्यवस्था के स्वरुप के आधार पर ही नियोजन का स्वरुप निर्धारित होता है। भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्यतः मिश्रित प्रकृति की है लेकिन हिंदू वृद्धि दर की सीमित सफलता और भूमंडलीकरण के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था का वर्ष 1991 के बाद से निजीकरण किया जा रहा है। वर्तमान में सार्वजनिक उपक्रमों के घाटे की प्रवृत्ति के कारण इनका निजीकरण किया जाना एक विमर्श का विषय बना हुआ है।
Explanation:
निजीकरण के लाभ: "व्यापार राज्य का व्यवसाय नहीं है" इस अवधारणा के परिप्रेक्ष्य में निजीकरण से कार्य निष्पादन में बेहतरीन संभावना होती है।
निजीकृत कंपनियों में बाज़ार अनुशासन के परिणामस्वरूप वे और अधिक दक्ष बनने के लिये बाध्य होंगे और अपने ही वित्तीय एवं आर्थिक कार्यबल के निष्पादन पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकेंगे। वे बाज़ार को प्रभावित करने वाले कारकों का अधिक सक्रियता से मुकाबला कर सकेंगे तथा अपनी वाणिज्यिक आवश्यकताओं की पूर्ति अधिक व्यावसायिक तरीके से कर सकेंगे। निजीकरण से सरकारी क्षेत्र के उद्यमों की सरकारी नियंत्रण भी सीमित होगा और इससे निजीकृत कंपनियों को अपेक्षित निगमित शासन की प्राप्ति हो सकेगी।
निजीकरण के परिणामस्वरूप, निजीकृत कंपनियों के शेयरों की पेशकश छोटे निवेशकों और कर्मचारियों को किये जाने से शक्ति और प्रबंधन को विकेंद्रित किया जा सकेगा।
निजीकरण का पूंजी बाज़ार पर लाभकारी प्रभाव होगा। निवेशकों को बाहर निकलने के सरल विकल्प मिलेंगे, मूल्यांकन और कीमत निर्धारण के लिये अधिक विशुद्ध नियम स्थापित करने में सहायता मिलेगी और निजीकृत कंपनियों को अपनी परियोजनाओं अथवा उनके विस्तार के लिये निधियाँ जुटाने में सहायता मिलेगी।
पूर्व के सार्वजनिक क्षेत्रों का उपर्युक्त निजी निवेशकों के लिये खोल देने से आर्थिक गतिविधि में वृद्धि होगी और कुल मिलाकर मध्यम से दीर्घावधि तक अर्थव्यवस्था, रोज़गार और कर-राजस्व पर लाभकारी प्रभाव पडे़गा।
दूरसंचार और पेट्रोलियम जैसे अनेक क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र का एकाधिकार समाप्त हो जाने से अधिक विकल्पों और सस्ते तथा बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पादों और सेवाओं के चलते उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी।
निजीकरण से संबंधित समस्याएँ: सार्वजनिक उपक्रमों के अनेक लाभ हैं इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि निजी क्षेत्र की अपेक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के अधिक आर्थिक, सामाजिक लाभ हैं और भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में निजीकरण की कई कठिनाइयाँ हैं। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की संकल्पना की गई है, सैद्धांतिक तौर इन विचारों का निजीकरण की प्रक्रिया से मतभेद होता है।
निजीकरण की प्रक्रिया की सबसे बड़ी कठिनाई यूनियन के माध्यम से श्रमिकों की ओर से होने वाला विरोध है वे बडे़ पैमाने पर प्रबंधन और कार्य-संस्कृति में परिवर्तन से भयभीत होते हैं।
निजीकरण के पश्चात् कंपनियों की विशुद्ध परिसंपत्ति का प्रयोग सार्वजनिक कार्यों और जनसामान्य के लिये नहीं किया जा सकेगा।
निजीकरण द्वारा बड़े उद्योगों को लाभ पहुँचाने के लिये निगमीकरण प्रोत्साहित हो सकता है जिससे धन संकेंद्रण की संभावना बढ़ जाएगी।
धन संकेंद्रण और व्यापारिक एकाधिकार की वजह से बाज़ार में स्वस्थ्य प्रतियोगिता का अभाव हो सकता है।
कार्यकुशलता औद्योगिक क्षेत्र की समस्याओं का एकमात्र उपाय निजीकरण नहीं है। उसके लिये तो समुचित आर्थिक वातावरण और कार्य संस्कृति में आमूल-चूल परिवर्तन होना आवश्यक है। भारत में निजीकरण को अर्थव्यवस्था की वर्तमान सभी समस्याओं को एकमात्र उपाय नहीं माना जा सकता।
वर्तमान में वैश्विक स्तर पर चल रहे व्यापार युद्ध और संरक्षणवादी नीतियों के कारण सरकार के नियंत्रण के अभाव में भारतीय अर्थव्यवस्था पर इनके कुप्रभावों को सीमित कर पाना अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है। निजीकरण के पश्चात् कंपनियों का तेज़ी से अंतर्राष्ट्रीयकरण होगा और इन दुष्प्रभावों का प्रभाव भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
Explanation:
अलताविस्ता के निजी क्षेत्र एवं सामाजिक क्षेत्र के मध्य अंतर स्पष्ट करें