Social Sciences, asked by abishekgupta907, 4 months ago

अर्थव्यवस्था के तीनों शतकों का व्याख्या कीजिए ​

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Answered by Anonymous
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Explanation:

भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

किसी भी अर्थव्यवस्था को तीन क्षेत्रक या सेक्टर में बाँटा जाता है:

प्राथमिक या प्राइमरी सेक्टर

द्वितीयक या सेकंडरी सेक्टर

तृतीयक या टरशियरी सेक्टर

प्राइमरी सेक्टर: जिस सेक्टर में होने वाली आर्थिक क्रियाओं द्वारा मुख्य रुप से प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल से उत्पादन होता है उसे प्राइमरी सेक्टर कहते हैं। उदाहरण: कृषि और कृषि से संबंधित क्रियाकलाप, खनन, आदि।

सेकंडरी सेक्टर: जिस सेक्टर में विनिर्माण प्रणाली के द्वारा उत्पादों को अन्य रूपों में बदला जाता है उसे सेकंडरी सेक्टर कहते हैं। उदाहरण: लोहा इस्पात उद्योग, ऑटोमोबाइल, आदि।

टरशियरी सेक्टर: जिस सेक्टर में होने वाली आर्थिक क्रियाओं के द्वारा अमूर्त वस्तुएँ प्रदान की जाती हैं उसे टरशियरी सेक्टर कहते हैं। उदाहरण: यातायात, वित्तीय सेवाएँ, प्रबंधन सलाह, सूचना प्रौद्योगिकी, आदि।

अर्थव्यवस्था का प्राइमरी सेक्टर से टरशियरी सेक्टर की तरफ का क्रमिक विकास:

प्राचीन काल में होने वाली आर्थिक क्रियाएँ प्राइमरी सेक्टर में ही होती थीं। धीरे-धीरे समय बदला और भोजन का उत्पादन सरप्लस होने लगा। इसके परिणामस्वरूप अन्य उत्पादों की आवश्यकता बढ़ने लगी, जिससे सेकंडरी सेक्टर का विकास हुआ। उन्नीसवीं सदी में औद्योगिक क्रांति हुई जिसके परिणामस्वरूप सेकंडरी सेक्टर में तेजी से विकास हुआ।

जब सेकंडरी सेक्टर विकसित हो गया तो ऐसी गतिविधियों की जरूरत पड़ने लगी जिनसे औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल सके। ट्रांसपोर्ट सेक्टर इसका अच्छा उदाहरण है। उद्योग धंधों को सुचारु रूप से चलाने के लिए ट्रांसपोर्ट की जरूरत भी पड़ती है। औद्योगिक उत्पाद ग्राहकों तक पहुँचे इसके लिये दुकानों की जरूरत होती है। इसी तरह कई अन्य सेवाओं की जरूरत होती है, जैसे एकाउंटैंट, ट्यूटर, कोरियर, डॉक्टर, सॉफ्टवेयर, आदि। ये सभी सेवाएँ टरशियरी सेक्टर में आती हैं।

विभिन्न सेक्टर की पारस्परिक निर्भरता:

कोई भी सेक्टर एक दूसरे के बिना नहीं काम कर सकता है यानि तीनों सेक्टर एक दूसरे पर निर्भर करते हैं। इसे समझने के लिए कपड़ा उद्योग का उदाहरण लेते हैं। सूती कपड़े के लिए कच्चा माल कपास होता है जो कृषि यानि प्राथमिक सेक्टर से आता है। बड़े पैमाने पर कपड़े बनाने के लिए टेक्स्टाइल मिल की जरूरत होती है। इन मिलों के लिए मशीनें भी बनानी पड़ती हैं। ये सब सेकंडरी सेक्टर में आते हैं। कच्चा माल और तैयार उत्पाद को लाने ले जाने के लिए ट्रकों और मालगाड़ियों की जरूरत पड़ती है। इन सबका लेखा जोखा रखने के लिए एकाउंटैट और मैनेजमेंट के लोगों की जरूरत पड़ती है। ये सभी टरशियरी सेक्टर में आते हैं।

भारत में विभिन्न सेक्टर का विकास और वर्तमान स्थिति

भारतीय अर्थव्यवस्था में अलग अलग सेक्टर का वैल्यू

भारतीय अर्थव्यवस्था में अलग अलग सेक्टर का वैल्यू

दिये गये ग्राफ को ध्यान से देखिए।

पहले ग्राफ में 1973 से 2003 तक अलग अलग सेक्टर के वैल्यू को रुपये में दिखाया गया है।

दूसरे ग्राफ में इन तीस सालों में इन सेक्टर की जीडीपी में भागीदारी को दिखाया गया है।

तीसरे ग्राफ में इन तीस सालों में इन सेक्टर द्वारा प्रदान किये गये रोजगार के अवसरों को दिखाया गया है।

पहले ग्राफ से पता चलता है की इन तीस वर्षों में तीनों सेक्टर में जबरदस्त वृद्धि हुई है। इससे पता चलता है कि हमारी अर्थव्यवस्था में विकास हुआ है।

भारत के जीडीपी में अलग अलग सेक्टर का शेअर

भारत के जीडीपी में अलग अलग सेक्टर का शेअर

दूसरे ग्राफ से यह स्पष्ट होता है कि जीडीपी में कृषि का शेअर तेजी से गिरा है। इसी अवधि में जीडीपी में उद्योग का शेअर स्थिर रहा है लेकिन सेवाओं का शेअर तेजी से बढ़ा है। इस अवधि में सेवाओं का शेअर 35% से बढ़कर 55% हो गया है। हम कह सकते हैं कि इस अवधि में सेवाओं के क्षेत्र में अच्छा विकास हुआ है।

भारत के अलग अलग सेक्टर में रोजगार के अवसर

भारत के अलग अलग सेक्टर में रोजगार के अवसर

लेकिन जब हम तीसरे ग्राफ को देखते हैं तो एक भयावह स्थिति पाते हैं। 1973 में रोजगार के 75% अवसर कृषि क्षेत्र में थे जो कि 2000 में 60% हो गया है। कृषि के जीडीपी में शेअर गिरने के बावजूद आज भी अधिकतर लोग रोजगार के लिए कृषि पर आश्रित हैं। ऐसा इसलिए हुआ है कि दूसरे सेक्टर में रोजगार के अवसर में इजाफा नहीं हुआ है। आज विकल्प के अभाव में मजदूरों का एक बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र में काम करने को बाध्य है।

ग्राफ में दिये गये आँकड़ों से हम निम्न बातें समझ सकते हैं:

जब मजदूरों का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर हो तो यह अच्छा संकेत नहीं है। भारत में कृषि में रोजगार के अवसर साल के कुछ महीने ही मिलते हैं। इसका मतलब है कि कृषि क्षेत्र में छिपी हुई बेरोजगारी की प्रबल आशंका होती है।

यदि हम ऐतिहासिक आंकड़े देखें तो पता चलता है कि जब कोई भी देश प्राइमरी सेक्टर से टरशियरी सेक्टर के चरण में पहुँच जाता है तो उस देश में चौतरफा विकास होता है। लेकिन भारत आज भी विकासशील देशों की श्रेणी में रखा जाता है। ऐसा इसलिए हुआ है कि अन्य क्षेत्रों में रोजगार के अवसर ठीक से पनप नहीं पाए हैं।

सेकंडरी और टरशियरी सेक्टर में रोजगार के कम अवसर हैं। इसलिए प्राइमरी सेक्टर पर अत्यधिक दबाव है। सेकंडरी और टरशियरी सेक्टर में केवल शिक्षित और कुशल मजदूरों को ही रोजगार मिल पाता है। अशिक्षित और अकुशल मजदूरों को प्राइमरी सेक्टर पर निर्भर रहना पड़ता है।

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