Arjun pe ek legh lighe hindi mei
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अर्जुन सबसे अच्छे धनुर्धर और द्रोणाचार्य के प्रमुख शिष्य थे। जीवन में अनेक अवसर पर उन्होने इसका परिचय दिया। इन्होने द्रौपदी को स्वयंवर में जीता था। कुरूक्षेत्र युद्ध में ये प्रमुख योद्धा थे। अर्जुन ने ही कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण से अलौकिक प्रश्न किये जो गीता में वर्णित हैं।
महाराज पाण्डु की दो पत्नियाँ थी कुन्ती तथा माद्री।मुनि दुर्वासा के वरदान द्वारा धर्मराज, वायुदेव तथा इंद्र का आवाहन कर तीन पुत्र माँगे। इंद्र द्वारा अर्जुन का जन्म हुआ।[1]
द्रोणाचार्य को ऐसे योद्धाओं की आवश्यकता थी जो राजा द्रुपद से प्रतिशोध ले सके। इसी कारण वे हस्तिनापुर के 105 राजकुमारों को शिक्षा देने लगे जिसमें से एक अर्जुन भी था।अर्जुन विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर माना जाता था।महर्षि वेदव्यास के कहने पर पाण्डव माता कुन्ती के साथ पांचाल चले गए जहाँ राजा द्रुपद की कन्या द्रौपदी का स्वयंवर रखा गया था। अर्जुन वहाँ ब्राह्मण के भेस में गया और देखा कि महा सभा लगी है, पूरे भारत से राजकुमार आए हैं परन्तु कोई भी लक्ष्य भेद नहीं पा रहा था,अर्जुन के अतिरिक्त स्वयं वासुदेव श्रीकृष्ण यह करने में सक्षम थे। तब अर्जुन ने लक्ष्य भेदन कर द्रौपदी को जीता था। फिर उन्होंने युधिष्ठिर के साथ द्रोपती का विवाह किया।सुभद्रा भगवान कृष्ण तथा बलराम की बहन थी जिसे कृष्ण के कहने पर अर्जुन द्वारिका से भगा ले गए थे। सुभद्रा से इनका अभिमन्यु नामक पुत्र हुआ जो कुरुक्षेत्र युद्ध में मारा गयासंस्कृत में 'ल' और 'र' को समान माना गया है इस अनुसार बृहन्नल को बृहन्नर भी कह सकते हैं जिसका संधि विच्छेद बृहद् + नर होगा। अज्ञातवास में वो वेश बदल कर विराट नगर में वास करते थे जहाँ उर्वशी के श्राप के कारण अर्जुन को बृहन्नला बनकर विराट नगर की राजकुमारी उत्तरा को नृत्य सिखाना पड़ाअन्य नाम संपादित करें
पार्थ (कुन्ती का अन्य नाम -'पृथा' है ; पार्थ = पृथा का पुत्र)
जिष्णु (जीतने वाला)
किरीटिन् ( इन्द्र द्वारा उपहार में मिला चमकते मुकुट 'किरीट' वाला)
श्वेतवाहन ( जिसके श्वेत रथ में श्वेत अश्व जुड़े हों)
भीभस्तु (गोरा योद्धा)
विजय (सदा जीतने वाला)
फाल्गुन (उत्तर फाल्गुण नक्षत्र में जन्मा)
सव्यसाची (दोनों हाथों से से बाण चलाने में सक्षम)