arthik vikas ke liye sakshrta kyu aabshyak hai? varnan kijiye
Answers
Explanation:
rthik vikas ke liye sakshrta kyu aabshyak hai? varnan
वर्तमान युग में शिक्षा बहुत जरूरी है। शिक्षा हमारे जीवन का आवश्यक अंग है। जब देश का हर नागरिक साक्षर होगा तभी देश की तरक्की हो सकेगी। ज्ञान इंसान को जीवन के सभी अंधेरों से बाहर निकाल एक बेहतर और उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर करता है। साक्षरता एवं शिक्षा में बहुत बड़ा अंतर होता है।
साक्षरता का आधार शिक्षा अर्जित करना होता है और शिक्षा का आधार ज्ञान। एक व्यक्ति बिना साक्षर हुए भी शिक्षित हो सकता है। साक्षरता एक मानव अधिकार है, सशक्तिकरण का मार्ग है और समाज तथा व्यक्ति के विकास का साधन है। लोकतंत्र की सुनिश्चितता के लिए साक्षरता आवश्यक है। वर्ष 2010 में जब बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का कानून 2009 लागू हुआ, यह देश के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी।
सभी के लिए प्रारंभिक शिक्षा की दिशा में देश के प्रयासों को इस कानून के लागू होने से जबर्दस्त बढ़ावा मिला। शिक्षा वह साधन है जो समाज को केवल शिक्षित ही नहीं करती वरन व्यक्ति के आत्मीय विकास में भी अहम योगदान निभाती है।
आज शिक्षा का अर्थ केवल साक्षरता से लिया जाता है, राज्य और राष्ट्र के विकास को साक्षरता की कसोटी पर नापा जाता है, जब वो स्वयं आत्मीक रूप से उन्न्त होगा। वह पक्के तौर पर समाज को भी उन्नति के रास्ते पर ले जा सकता है। आर्थिक प्रगति के लिए शिक्षा जरूरी है साक्षरता नहीं।
शिक्षित व्यक्ति अपनी आय का साधन बढ़ा सकता है और आये हुए धन को सहेज कर अमीर भी बन सकता है, परन्तु केवल साक्षर व्यक्ति ये काम नहीं कर सकता। यहां शिक्षा और साक्षरता का अंतर समझना बहुत जरूरी है। शिक्षा का अर्थ है किसी उपयोगी कल को सीखना जबकि साक्षरता केवल मात्र अक्षर ज्ञान है। शिक्षा एक बहुआयामी साधन है, जो मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारती है।
व्यक्तित्व निर्माण के कारण ही मनुष्य, समाज का निर्माण और दिशा प्रदान करने का कार्य करता है। समाज निर्माण और राष्ट्र निर्माण के लिए शिक्षा बहुत ही आवश्यक है। साक्षरता का अर्जन एक सशक्तिकरण की प्रक्रिया है और यह विकास तथा स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है।
साक्षरता और स्वास्थ्य को जोडऩे वाली अनेक अत्यधिक महत्वपूर्ण कडियां हैं। साक्षरता दक्षता और व्यवहार वे शक्तिशाली साधन हैं, जो स्वास्थ्य की बेहतर संभावनाएं निर्मित करने के लिए महिलाओं और पुरुषों में आवश्यक क्षमताओं तथा आत्मविश्वास को विकसित करती है। साक्षरता का अर्थ केवल पढऩे-लिखने और हिसाब-किताब करने की योग्यता प्राप्त करना ही नहीं है, बल्कि हमें नवसाक्षरों में नैतिक मूल्यों के प्रति आदरभाव रखने की भावना पैदा करना होगी।
2011 की जनगणना के अनुसार देश में अब 82.1 फीसदी पुरुष और 64.4 फीसदी महिलाएं साक्षर हैं। पिछले दस वर्षों में ज्यादा महिलाएं(4 फीसदी) साक्षर हुई हैं। पहली बार जनगणना आंकडों में इस बात के सकारात्मक संकेत भी मिले हैं कि महिलाओं की साक्षरता दर पुरुषों की साक्षरता दर से 6.4 फीसदी अधिक है। लेकिन अरुणाचल प्रदेश और बिहार में अब भी सबसे कम साक्षरता है।
वहीं केरल और लक्षद्वीप में सबसे ज्यादा 93 और 92 प्रतिशत साक्षरता है। केरल को छोड़ दिया जाए तो देश के अन्य शहरों की हालत औसत है जिनमें से बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की हालत बहुत ही दयनीय है। मानव विकास और समाज के लिये उनके अधिकारों को जानने और साक्षरता की ओर मानव चेतना को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जाता है।
सफलता और जीने के लिये खाने की तरह ही साक्षरता भी महत्वपूर्ण है। गरीबी को मिटाना, बाल मृत्यु दर को कम करना, जनसंख्या वृद्घि को नियंत्रित करना, लैंगिक समानता को प्राप्त करना आदि को जड़ से उखाडऩा बहुत जरूरी है। साक्षरता में वो क्षमता है जो परिवार और देश की प्रतिष्ठा को बढ़ा सकता है।
ये उत्सव लगातार शिक्षा को प्राप्त करने की ओर लोगों को बढ़ावा देने के लिये और परिवार, समाज तथा देश के लिये अपनी जिम्मेदारी को समझने के लिये मनाया जाता है। मानव के सर्वांगीण विकास में शिक्षा का अहम योगदान होता है।
अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाने का उद्देश्य व्यक्ति, समुदाय तथा समाज के हर वर्ग को साक्षरता का महत्व बताकर उन्हें साक्षर करना है। साक्षरता का मतलब केवल पढऩा-लिखना या शिक्षित होना ही नहीं है।
यह लोगों में उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता लाकर सामाजिक विकास का आधार बन सकती है। गरीबी उन्मूलन में इसका महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।
विश्व संगठन का आकलन है कि दुनिया के 127 देशों में 101 देश ऐसे हैं, जो पूर्ण साक्षरता हासिल करने से दूर हैं, जिनमें भारत भी शामिल है। भारत में साक्षरता दर वैश्विक स्तर से नीचे है। भारत में अब भी साक्षरता की दर संतोषजनक नहीं है। संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों के सूचकांक के मुताबिक भारत में अब भी साक्षरता का प्रतिशत इसके 75 प्रतिशत के वैश्विक स्तर से काफी नीचे है। साक्षरता और स्वास्थ्य में भी गहरा संबंध है।
स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाकर शिशु और मातृ मृत्युदर में कमी लाना, लोगों को जनसंख्या विस्फोट के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक करना इसके उद्देश्यों में शामिल है। किन्तु आज भी कुछ क्षेत्रों में निरक्षरता और जाति और लिंग आदि जैसे कारणों से मौजूद भिन्नता सिरदर्द बनी हुई है।
इतना ही नहीं निरक्षर लोगों की कुल संख्या अब भी बहुत अधिक है और ज्ञानवान समाज के लक्ष्य की तरफ बढ़ता कोई भी देश अपनी इतनी विशाल आबादी को निरक्षर नहीं रहने दे सकता। साक्षारता ही वह प्रकाश-पुंज है, जो दुनिया के करोड़ों लोगों को अज्ञानता के अंधियारे से निकालकर उनके जीवन में ज्ञान का उजाला फैला सकता है। साक्षरता मानव की प्रगति और विकास का मूल मंत्र है। स्वतंत्रता प्राप्त करने से पूर्व हमारे देश की जनसंख्या में अनपढ़ लोगों की संख्या बहुत अधिक थी। किन्तु सरकार के अथक प्रयासों से आज समाज, हर व्यक्ति को शिक्षित करने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा।