arthvistar- नास्ति मेघसमं तोयं नास्ति चात्मसमं बलम् ।
नास्ति चक्षु:समं तेजो नास्ति धान्यसमं प्रियम् ।।
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नास्ति मेघसमं तोयं नास्ति चात्मसमं बलम् ।
नास्ति चक्षु:समं तेजो नास्ति धान्यसमं प्रियम् ।।
भावार्थ : एक बादल के समान शुद्ध जल प्रदान करने वाला और कोई दूसरा स्रोत नही होता है। स्वयं के आत्मबल के बड़ा कोई दूसरा बल नही होता है। आँखों के समान प्रकाश का अनुभव कराने वाली दूसरा कोई नही हो सकता है। भोजन में प्रयुक्त होने वाले सभी प्रकार के धान्य के जैसी प्रिय वस्तु और कोई नही हो सकती।
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