article on van mohotsav in hindi
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पर्यावरण के प्रति पुरातन काल में भी लोग बहुत सचेत थे जैसे कि गुप्तवंश, मौर्यवंश, मुगलवंश वनों को सुरक्षित रखने के लिए बहुत ही सराहनीय प्रयास किए गए थे. लेकिन जैसे-जैसे हमारा देश तरक्की करता जा रहा है अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वह निरंतर वनों की कटाई करता जा रहा है. इस बात को सन 1947 में ही भाप लिया गया था कि अगर वनों को नहीं बचाया गया तो मानव सभ्यता का जीवन संकट में पड़ सकता है.
सन् 1947 में स्व. जवाहरलाल नेहरू, स्व. डॉ. राजेंद्र प्रसाद और मौलाना अब्दुल कलाम आजाद के के संयुक्त प्रयास से जुलाई के प्रथम सप्ताह में वन महोत्सव मनाया जाता है. यह वन महोत्सव इसलिए मनाया जाता है जिससे लोगों में पेड़ लगाने के प्रति चेतना उत्पन्न हो और अधिक से अधिक वे पेड़ लगाएं.
इस महोत्सव के दौरान सरकार द्वारा भी लाखों पेड़ लगाए जाते हैं और साथ ही कई ऐसी संस्थाएं भी होती हैं जो कि जगह जगह पर पौधारोपण करती है. वन महोत्सव का प्रमुख उद्देश्य यही है कि लोग पेड़ों का महत्व समय रहते ही समझ जाएं और अधिक से अधिक संख्या में वृक्षारोपण करें.
लेकिन 1947 में Van Mahotsav का आयोजन सिर्फ अनौपचारिक रूप से ही किया गया था जिसके कारण यह है बड़ा रूप नहीं ले पाया लेकिन सन 1950 में तत्कालीन कृषि मंत्री कन्हैया लाल माणिकलाल मुंशी ने इस महोत्सव को आधिकारिक रूप से लागू कर दिया. यह निर्णय मील का पत्थर साबित हुआ क्योंकि अगर यह निर्णय नहीं लिया जाता तो शायद आज भारत में 20% की जगह 10% ही वन पाए जाते.
सन् 1947 में स्व. जवाहरलाल नेहरू, स्व. डॉ. राजेंद्र प्रसाद और मौलाना अब्दुल कलाम आजाद के के संयुक्त प्रयास से जुलाई के प्रथम सप्ताह में वन महोत्सव मनाया जाता है. यह वन महोत्सव इसलिए मनाया जाता है जिससे लोगों में पेड़ लगाने के प्रति चेतना उत्पन्न हो और अधिक से अधिक वे पेड़ लगाएं.
इस महोत्सव के दौरान सरकार द्वारा भी लाखों पेड़ लगाए जाते हैं और साथ ही कई ऐसी संस्थाएं भी होती हैं जो कि जगह जगह पर पौधारोपण करती है. वन महोत्सव का प्रमुख उद्देश्य यही है कि लोग पेड़ों का महत्व समय रहते ही समझ जाएं और अधिक से अधिक संख्या में वृक्षारोपण करें.
लेकिन 1947 में Van Mahotsav का आयोजन सिर्फ अनौपचारिक रूप से ही किया गया था जिसके कारण यह है बड़ा रूप नहीं ले पाया लेकिन सन 1950 में तत्कालीन कृषि मंत्री कन्हैया लाल माणिकलाल मुंशी ने इस महोत्सव को आधिकारिक रूप से लागू कर दिया. यह निर्णय मील का पत्थर साबित हुआ क्योंकि अगर यह निर्णय नहीं लिया जाता तो शायद आज भारत में 20% की जगह 10% ही वन पाए जाते.
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