Social Sciences, asked by dheerajsinghbisht77, 4 months ago

असंगठित क्षेत्रक की विशेषताएं लिखिए कोई 5​

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Answered by ishanraj093
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असंगठित क्षेत्र

इस क्षेत्र में वे सारे संस्थान आते हैं जो 1948 के फैक्टरी एक्ट के अंतर्गत नहीं आते हैं अर्थात (अ) जो बिजली का उपयोग नहीं करते और (20 तक) अधिक लोगों को काम देते हैं। इस ‘अवस्थित’ या अनौपचारिक’ उद्योग है, इसलिए इनसे सम्बन्धित तथ्य इकट्ठा करना बहुत मुशिकल है। परन्तु (उद्योगवार या क्षेत्रवार) फुटकर संस्थानों का थोड़ा गहरा अध्ययन करने से समान्य परिस्थिति की एक झलक सामने आ सकती है। ऐसे कई अध्ययनों से इस तथ्य की पुष्टि हुई है कि इन क्षेत्रों में बच्चों का बेहद शोषण होता है और बाल श्रम का प्रमाण भी बहुत अधिक है, जैसे-उनके काम की मजदूरी लगभग न के बराबर होती है, उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में, कभी-कभी तो बड़ी ही खतरनाक स्थिति में काम करना पड़ता है, काम का और सोने का स्थान प्रायः एक ही होता है, उनके साथ बड़ा ही दुर्व्यवहार किया जाता है। फिर भी काम से हटा दिए जाने की आशंका के कारण वह सब उन्हें सहना पड़ता है। उन बच्चों की शारीरिक और मानसिक सहिष्णुता की पूरी-पूरी परीक्षा हो जाती है। (देखे सुमंत बनर्जी, चाइल्ड लेबर इन इंडिया, 1979’ चाईल्ड लेबर इन डेल्ली/बाम्बे, इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर रीजनल डेवलपमेंट स्टडीज ,1979. स्मितु कोठारी, चाइल्ड लेबर इन शिवकाशी, ई.पी. डबल्यू, 198 3, आदि)

इस क्षेत्र में बच्चों को काम देने वाले संस्थानों के आकार-प्रकार और उनके काम अनेक प्रकार के हैं, जिनमें से कुछ ये हैं घरेलू कामकाज, मोटर वर्कशाप, परचून की दुकानें, साईकिल मरम्मत, छपाई प्रेस और सभी प्रकार की छोटी दुकानें। (लीला दुवे 1881-८४) इस क्षेत्र के कामों को मुख्यतः तीन श्रणियों में बांटा जा सकता है।

- दूसरों के लिए काम करना।

- घरेलू इकाइयों/उद्योगों में काम

- अपने लिए काम करना (स्वयं रोजगार

बच्चों को काम देने वाला एक बड़ा क्षेत्र है। ‘निर्माण उद्योग’ (कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री) इसमें आमतौर पर करार पूरे परिवार के साथ किया जाता है, जिसमें पति-पत्नीं और बच्चे सबसे काम की अपेक्षा रहती है, कुछ निश्चित अवधि के लिए किसी एकमुश्त रकम पर यह करार होता है (बनर्जी ऍस.1979:187) भारत में ऐसे परिवार अक्सर आव्रजक (दूसरे प्रदेशों में जा बसे) परिवार ही होते हैं और काम पाने का उनका एकमात्र जरिया ठेकेदार या जमादार हुआ करते हैं। वे उन्हें लगभग बंधुआ जैसे हालत में रखते हैं। इस तरह के श्रमिकों के शोषण का जबरदस्त नमूना 188२ में एशियाड सम्बन्धी निर्माण कार्य में देखने को मिला। बताया गया कि अलग-अलग निर्माण कार्यों में लगभग एक लाख प्रवासी मजदूर कम कर रहे थे जिनमें औरतें और बच्चे भी बड़ी मात्रा में थे। ‘ये सब राजस्थान, उत्तर प्रद्रेश, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और केरल जैसे दूर-दूर के प्रदेशों में भी आये हुए थे—उनकी मजदूरी बहुत कम तो थी ही, काम के समय हुई दुर्घटना का और मृत्यु का मुआवजा उन्हें नहीं दिया गया। (पीड़ित,पी.आई.डी.आई.डाक्युमेंटशन1993:1)

‘पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स” की जाँच में यह बात सामने आई कि कामगार महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा से सम्बन्धित सभी कायदे-कानूनों का, जिनमें न्यूनतम मजदूरी कानून, आव्रजित मजदूर कानून, बाल रोजगार कानून और बंधुआ मजदूर कानून भी शामिल हैं साफ उल्लंघन किया गया(वही) ।

ईंट भट्टा, पत्थर खादानों आदि उद्योगों में भी स्थिति ऐसी ही है। मजदूरों को खासकर बच्चों को बंधुआ बना लेने की घटना आम है। कृषि क्षेत्र असंगठित क्षेत्र है। इसमें बहुसंख्यक बाल मजदूर हैं। इसमें ख़ास दुःख पहुँचाने वाली बात यह है कि खेतिहर मजदूरों में लड़कियों की संख्या सबसे ज्यादा है। मजदूर लड़कियों के काम की मात्रा भी लड़कों से कहीं अधिक है। (के.डी. गंगराडे, 1983)

बहुत बड़ी संख्या में बच्चों को काम देने वाला क्षेत्र कुटीर उद्योग या हस्तलिपि है। “अनधिकृत जानकारी के अनुसार इस उद्योग में लगे कुल श्रमिकों का 80 प्रतिशत भाग बच्चों का माना जाता है। (ऍस.बनर्जी, 1979:18) यहाँ बच्चे सीधे ही मजदूर लेकर काम करते हैं या सीखने के रूप में करते हैं । हाँ, इस क्षेत्र में अपने ही घर के ऐसे कुटीर उद्योग में काम करने वाले बच्चों की भी काफी बड़ी संख्या है।

बाल मजदूरों को मुख्यतः चार वर्गों में विभाजित किया जाता है। जिन्हें प्राथमिक, द्वितीय तथा तृतीय क्षेत्रों की गतिविधियों में भी विभाजित किया जा सकता है। प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीय क्षेत्रों में अनेक बाल श्रमिक काम करते हैं। प्राथमिक क्षेत्रों में संलग्न श्रमिक: (क) किसान (ख) कृषि श्रमिक और (ग) पशुधन, वन, मत्स्य, शिकार, बागानों में संलग्न बच्चे। द्वितीयक क्षेत्र के श्रमिक (क) खदान एवं उत्खनन (ख) निर्माण, प्रक्रिया, सेवा तथा मरम्मत और (ग) विनिर्माण। तृतीय क्षेत्र में (क) व्यापार तथा वाणिज्य और (ख) परिवहन, भंडार, संचार तथा अन्य सेवाएं।

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Answered by purujitpranshu
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इस क्षेत्र में वे सारे संस्थान आते हैं जो 1948 के फैक्टरी एक्ट के अंतर्गत नहीं आते हैं अर्थात (अ) जो बिजली का उपयोग नहीं करते और (20 तक) अधिक लोगों को काम देते हैं। इस ‘अवस्थित’ या अनौपचारिक’ उद्योग है, इसलिए इनसे सम्बन्धित तथ्य इकट्ठा करना बहुत मुशिकल है। परन्तु (उद्योगवार या क्षेत्रवार) फुटकर संस्थानों का थोड़ा गहरा अध्ययन करने से समान्य परिस्थिति की एक झलक सामने आ सकती है। ऐसे कई अध्ययनों से इस तथ्य की पुष्टि हुई है कि इन क्षेत्रों में बच्चों का बेहद शोषण होता है और बाल श्रम का प्रमाण भी बहुत अधिक है, जैसे-उनके काम की मजदूरी लगभग न के बराबर होती है, उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में, कभी-कभी तो बड़ी ही खतरनाक स्थिति में काम करना पड़ता है, काम का और सोने का स्थान प्रायः एक ही होता है, उनके साथ बड़ा ही दुर्व्यवहार किया जाता है। फिर भी काम से हटा दिए जाने की आशंका के कारण वह सब उन्हें सहना पड़ता है। उन बच्चों की शारीरिक और मानसिक सहिष्णुता की पूरी-पूरी परीक्षा हो जाती है। (देखे सुमंत बनर्जी, चाइल्ड लेबर इन इंडिया, 1979’ चाईल्ड लेबर इन डेल्ली/बाम्बे, इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर रीजनल डेवलपमेंट स्टडीज ,1979. स्मितु कोठारी, चाइल्ड लेबर इन शिवकाशी, ई.पी. डबल्यू, 198 3, आदि)

इस क्षेत्र में बच्चों को काम देने वाले संस्थानों के आकार-प्रकार और उनके काम अनेक प्रकार के हैं, जिनमें से कुछ ये हैं घरेलू कामकाज, मोटर वर्कशाप, परचून की दुकानें, साईकिल मरम्मत, छपाई प्रेस और सभी प्रकार की छोटी दुकानें। (लीला दुवे 1881-८४) इस क्षेत्र के कामों को मुख्यतः तीन श्रणियों में बांटा जा सकता है।

- दूसरों के लिए काम करना।

- घरेलू इकाइयों/उद्योगों में काम

- अपने लिए काम करना (स्वयं रोजगार

बच्चों को काम देने वाला एक बड़ा क्षेत्र है। ‘निर्माण उद्योग’ (कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री) इसमें आमतौर पर करार पूरे परिवार के साथ किया जाता है, जिसमें पति-पत्नीं और बच्चे सबसे काम की अपेक्षा रहती है, कुछ निश्चित अवधि के लिए किसी एकमुश्त रकम पर यह करार होता है (बनर्जी ऍस.1979:187) भारत में ऐसे परिवार अक्सर आव्रजक (दूसरे प्रदेशों में जा बसे) परिवार ही होते हैं और काम पाने का उनका एकमात्र जरिया ठेकेदार या जमादार हुआ करते हैं। वे उन्हें लगभग बंधुआ जैसे हालत में रखते हैं। इस तरह के श्रमिकों के शोषण का जबरदस्त नमूना 188२ में एशियाड सम्बन्धी निर्माण कार्य में देखने को मिला। बताया गया कि अलग-अलग निर्माण कार्यों में लगभग एक लाख प्रवासी मजदूर कम कर रहे थे जिनमें औरतें और बच्चे भी बड़ी मात्रा में थे। ‘ये सब राजस्थान, उत्तर प्रद्रेश, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और केरल जैसे दूर-दूर के प्रदेशों में भी आये हुए थे—उनकी मजदूरी बहुत कम तो थी ही, काम के समय हुई दुर्घटना का और मृत्यु का मुआवजा उन्हें नहीं दिया गया। (पीड़ित,पी.आई.डी.आई.डाक्युमेंटशन1993:1)

‘पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स” की जाँच में यह बात सामने आई कि कामगार महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा से सम्बन्धित सभी कायदे-कानूनों का, जिनमें न्यूनतम मजदूरी कानून, आव्रजित मजदूर कानून, बाल रोजगार कानून और बंधुआ मजदूर कानून भी शामिल हैं साफ उल्लंघन किया गया(वही) ।

ईंट भट्टा, पत्थर खादानों आदि उद्योगों में भी स्थिति ऐसी ही है। मजदूरों को खासकर बच्चों को बंधुआ बना लेने की घटना आम है। कृषि क्षेत्र असंगठित क्षेत्र है। इसमें बहुसंख्यक बाल मजदूर हैं। इसमें ख़ास दुःख पहुँचाने वाली बात यह है कि खेतिहर मजदूरों में लड़कियों की संख्या सबसे ज्यादा है। मजदूर लड़कियों के काम की मात्रा भी लड़कों से कहीं अधिक है। (के.डी. गंगराडे, 1983)

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