अस के अधर अमी भरि राखे। अबहि अछूत, न काहू चाखे।।
मुख तंबोल रंग धारहि रसा। केहि मुख जोग सो अमृत बसा ?
राता जगत देखि रंगराती। रुहिर भरे, आछहि बिहंसाती।।
घ) जोग ठगौरी ब्रज न बिकैहैं।
यह ब्योपार तिहारो उधो। ऐसोई फिरि जैहैं।।
जापै लै आए हौ मधुकर ताके उर न समैहैं।।
दाख छाँड़ि के कटुक निबौरी को अपने मुख खैहैं ?
मूरी के पातन के केना को मुक्ताहल दैहैं।
सूरदास प्रभु गुनहि छाँड़ि के को निर्गुन निरबैहैं ?संदर्भ सहित व्याख्या दीजिए
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Answer:अधर अमी भरि राखे। अबहि अछूत, न काहू चाखे।।
मुख तंबोल रंग धारहि रसा। केहि मुख जोग सो अमृत बसा ?
राता जगत देखि रंगराती। रुहिर भरे, आछहि बिहंसाती।।
घ) जोग ठगौरी ब्रज न
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देखि रंगराती। रुहिर भरे, आछहि बिहंसाती।।
घ) जोग ठगौरी ब्रज न बिकैहैं।
यह ब्योपार तिहारो उधो। ऐसोई
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