अस्तेय तथा अपरिग्रह का क्या सम्बन्ध है?
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योग में आठ अंग होते हैं। आठ अंगों में यम प्रथम अंग होता है और यम के उपांग होते हैं। उन अंगों में ‘अस्तेय’ और ‘अपरिग्रह’ तीसरे और पांचवें उपांग हैं। इन दोनों का जीवन में बहुत ही महत्व है।
योग का सिद्धांत है कि 70% से अधिक लोग मानसिक अवस्था के कमजोर होने के कारण होते हैं। अगर शरीर मानसिक रूप से स्वस्थ है तो रोगों का आक्रमण कम होता है।
अस्तेय — अस्तेय का तात्पर्य है चोरी ना करना। अर्थात मन में चोरी की भावना ना रखना। किसी के धन पर गलत दृष्टि ना डालना। किसी दूसरे का धन हड़पने की भावना से हमारा मन कलुषित होता है। जब हम इस भावना पर नियंत्रण स्थापित कर लेते हैं तो हमारा चित्त साफ और स्वच्छ बनता है और हमारी मानसिक दृढ़ता उत्पन्न होती है।
अपरिग्रह — अपरिग्रह का अर्थ है अनासक्ति। अर्थात किसी भी विषय-वस्तु में आसक्ति ना रखना। आजकल संसार में लोगों में संग्रह करने की प्रवृत्ति पाई जाती है। किसी वस्तु के प्रति बहुत अधिक मोह रखना और संग्रह करना मन को संकुचित करता है और फिर हम उसी में उलझ कर रह जाते हैं। हमारा विस्तार नहीं हो पाता आसक्ति के कारण बुरी आदतों का जन्म भी होता है इसलिए आसक्ति का त्याग करना और अपरिग्रह को अपनाना योग में सफलता पाने की महत्वपूर्ण सीढ़ी है।
दोनों का संबंध और लाभ — यदि आपका मन साफ है किसी के धन के प्रति आपके मन में कोई भी कुविचार नहीं है। आप स्वयं के परिश्रम पर विश्वास रखते हैं और स्वयं के परिश्रम द्वारा अर्जित वस्तु का उपयोग करना चाहते हैं। आपनी किसी विषय वस्तु के प्रति आसक्ति नहीं है और आप निर्विकार भाव से संसार में रहते हैं। मोह-माया का आपने परित्याग कर दिया है और अपने मन को नियंत्रित कर लिया है तो फिर आपकी मानसिक अवस्था अत्यंत ही दृढ़ हो चुकी है। आपकी मानसिक दृढता आपके अच्छे स्वास्थ्य और सफलता की आधारशिला है।
Explanation:
अस्तेय का तात्पर्य है चोरी ना करना। अर्थात मन में चोरी की भावना ना रखना। जब हम इस भावना पर नियंत्रण स्थापित कर लेते हैं तो हमारा चित्त साफ और स्वच्छ बनता है और हमारी मानसिक दृढ़ता उत्पन्न होती है। अपरिग्रह — अपरिग्रह का अर्थ है अनासक्ति