अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति !
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ? In hindi meaning
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हड्डियो ओर चमडें से मीली इस शरीर से एसा प्रेम
अगर ऐसा प्रेम भगवान से होता तो फिर चिंता ओर डर नही होता
अगर ऐसा प्रेम भगवान से होता तो फिर चिंता ओर डर नही होता
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“अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति !
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?”
संदर्भ :- प्रस्तुत पंक्तियां तुलसीदास जी की
पत्नी , रत्नावली द्वारा कथित है।
व्याख्या :- इन पंक्तियों के सहारे , रत्नावली
तुलसीदास जी को राम की भक्ति करने हेतु
प्रेरित कर रही है।
रत्नावली कहती है कि , मेरा शरीर तो अस्थि
अर्थात् हड्डियों और चर्म ( अर्थात् मांस , खाल )
से बना हुआ है । फिर इससे ऐसा क्या प्रीति
( प्रेम ) ? इसका तनिक प्रेम भी अगर प्रभु राम
जी से करते तो , आपका पूरा जीवन का
उद्धार हो जाता । तथा प्रभु की अपार कृपा
होती।
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