असुवन जल सींचि - सींचि प्रेम-बेलि’ – पंक्ति में प्रयुक्त अलंकार है - *
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पुनरूक्ति प्रकाश अंलकार।
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शिल्प-सौंदर्य- 'सींचि-सींचि' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार
- भाव सौंदर्य - मीरा ने भारी कष्ट सहकर कृष्ण प्रेम की बेल बाई हैं। अर्थात् भारी कष्टों के मध्य मीरा के हृदय में कृष्ण प्रेम उत्पन्न हुआ है। अब तो इस बैल के फलने-फूलने का समय आया है अर्थात् अब उसे कृष्ण-प्रेम के परिणामस्वरूप आनंद-रूपी फल को प्राप्ति होने वाली है, अत: वह इससे वंचित नहीं होता चाहेगी। - ब्रज एवं राजस्थानी भाषा का मिश्रित श्रेत रूप है।
- कवयित्री मीरा मोर-मुकुट धारण किए हुए श्रीकृष्ण को अपना पति मानते हुए कहती हैं कि उनके सिवा इस जगत में मेरा कोई दूसरा नहीं।आगे कवयित्री कहती हैं कि मैंने कुल की मर्यादा का भी ध्यान छोड़ दिया है तथा संतों के साथ उठते-बैठते लोक-लज्जा सब कुछ त्यागकर स्वयं को कृष्ण-भक्ति में लीन कर लिया है ।कवयित्री मीरा कहती हैं कि कृष्ण के प्रेम रूपी बेल को सींचने के लिए मैंने अपने आँसुओं को नि:स्वार्थ भाव से न्यौछावर किया है ।
- फलस्वरूप, जिस बेल के बढ़ने से आनंद रूपी फल की प्राप्ति हुई है। आगे कवयित्री एक दृष्टांत प्रस्तुत करते हुए कहती हैं कि जिस प्रकार दूध में मथानी डालकर दही से मक्खन निकाला जाता है और शेष छाछ को पृथक कर दिया जाता है, ठीक उसी प्रकार मीरा ने भी सांसारिकता के ढकोसलेपन से स्वयं को दूर रखा है और अपनी सच्ची और आत्मिक भक्ति से श्रीकृष्ण के प्रेम को प्राप्त किया है।
- आगे कवयित्री मीरा कहती हैं कि जब मैं भक्तों को देखती हूँ, तो मुझे प्रसन्नता होती है और उन लोगों को देखकर मुझे दुख होता है, जो सांसारिकता के जाल में फँसे हुए हैं ।
- भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवयित्री मीरा के द्वारा रचित है, जो पद नरोत्तम दास स्वामी द्वारा संकलित 'मीरा मुक्तावली' से लिए गए हैं ।
- इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री मीरा कहती हैं कि वह कृष्ण के प्रेम में दीवानी हो गई हैं तथा पैरों में घुँघरू बाँधकर नाचने में मग्न है । कवयित्री मीरा कृष्ण के प्रेम में इतना रसविभोर हो गई हैं कि लोग उसे पागल की संज्ञा देने लगे हैं। उनके सगे संबंधी कहते हैं कि ऐसा करके वह कुल का नाम ख़राब कर रही है।
- आगे कवयित्री मीरा कहती हैं कि राणा जी ने उसे मारने के लिए विष का प्याला भेजा था, जिसे वह हँसते-हँसते पी ली और अमरत्व को प्राप्त हुई । आगे कवयित्री कहती हैं कि यदि प्रभु की भक्ति सच्चे मन से किया जाए तो वे सहजता से प्राप्त हो जाते हैं । ईश्वर को अविनासी की संज्ञा इसलिए दी गई है, क्योंकि वे नश्वर हैं।
- भाव सौंदर्य द्वारा रचित पद से प्रस्तुत पंक्तियाँ कवयित्री मीरा उद्धृत हैं कवयित्री मीरा कहती हैं कि कृष्ण के प्रेम रूपी बेल को सींचने के लिए मैंने अपने आँसुओं को नि:स्वार्थ भाव से न्यौछावर किया है। |
- फलस्वरूप, जिस बेल के बढ़ने से आनंद रूपी फल की प्राप्ति हुई है अर्थात् वह कहती हैं कि श्रीकृष्ण से प्रेम करने का मार्ग सरल नहीं है इस प्रेम की बेल को सींचने के लिए बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ।
शिल्प सौंदर्य -- यहाँ व्रजभाषा में सुंदर अभिव्यक्ति हुई है, जो राजस्थानी मिश्रित है । साँगरूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है जैसे -- आणंद-फल, अंसुवन जल, प्रेम बेलि 'सींचि-सचि' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है । बेल बोयी में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग भी हुआ है गेयता है ।
- भाव सौंदर्य प्रस्तुत पंक्तियाँ कवयित्री मीरा द्वारा रचित पद से उद्धृत हैं। कवयित्री मीरा एक दृष्टांत प्रस्तुत करते हुए कहती हैं कि जिस प्रकार दूध में मथानी डालकर दही से मक्खन निकाला जाता है और शेष छाछ को पृथक कर दिया जाता है, ठीक उसी प्रकार उसने ने भी सांसारिकता के ढकोसलेपन से स्वयं को दूर रखा है और अपनी सच्ची और आत्मिक भक्ति श्रीकृष्ण के प्रेम को प्राप्त किया है।
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