Social Sciences, asked by tamannachrist, 7 months ago

असहयोग आंदोलन शहरों में किस प्रकार फैला​

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Answered by Anonymous
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शहरों में आंदोलन:

शहरों में मध्य-वर्ग से आंदोलन में अच्छी भागीदारी हुई। हजारों छात्रों ने सरकारी स्कूल और कॉलेज छोड़ दिए, शिक्षकों ने इस्तीफा दे दिया और वकीलों ने अपनी वकालत छोड़ दी। मद्रास को छोड़कर अधिकांश राज्यों में काउंसिल के चुनावों का बहिष्कार किया गया। मद्रास की जस्टिस पार्टी में ऐसे लोग थे जो ब्राह्मण नहीं थे।

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Answered by mrdahiya38
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भारत में राष्ट्रवाद

असहयोग आंदोलन

महात्मा गांधी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक स्वराज (1909) में लिखा कि भारत में अंग्रेजी राज इसलिए स्थापित हो पाया क्योंकि भारत के लोगों ने उनके साथ सहयोग किया। भारतीय लोगों के सहयोग के कारण अंग्रेज यहाँ पर हुकूमत करते रहे। यदि भारत के लोग सहयोग करना बंद कर दें, तो अंग्रेजी राज एक साल के अंदर चरमरा जायेगा और स्वराज आ जायेगा। गांधीजी को पूरा विश्वास था कि यदि भारतीय लोग अंग्रेजों से सहयोग करना बंद कर देंगे तो अंग्रेजों के पास भारत को छोड़कर जाने के सिवा और कोई रास्ता नहीं बचेगा।

असहयोग आंदोलन के कुछ प्रस्ताव:

अंग्रेजी सरकार द्वारा प्रदान की गई उपाधियों को वापस करना।

सिविल सर्विस, सेना, पुलिस, कोर्ट, लेजिस्लेटिव काउंसिल और स्कूलों का बहिष्कार।

विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार।

यदि सरकार अपनी दमनकारी नीतियों से बाज न आये, तो संपूर्ण अवज्ञा आंदोलन शुरु करना।

आंदोलन के विभिन्न स्वरूप

असहयोग-खिलाफत आंदोलन की शुरुआत जनवरी 1921 में हुई थी। इस आंदोलन में समाज के विभिन्न वर्गों ने शिरकत की थी और हर वर्ग की अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाएँ थीं। सबने स्वराज के आह्वान का सम्मान किया था, लेकिन विभिन्न लोगों के लिए इसके विभिन्न अर्थ थे।

शहरों में आंदोलन:

शहरों में मध्य-वर्ग से आंदोलन में अच्छी भागीदारी हुई।

हजारों छात्रों ने सरकारी स्कूल और कॉलेज छोड़ दिए, शिक्षकों ने इस्तीफा दे दिया और वकीलों ने अपनी वकालत छोड़ दी।

मद्रास को छोड़कर अधिकांश राज्यों में काउंसिल के चुनावों का बहिष्कार किया गया। मद्रास की जस्टिस पार्टी में ऐसे लोग थे जो ब्राह्मण नहीं थे। उनके लिए काउंसिल के चुनाव एक ऐसा माध्यम थे जिससे उनके हाथ में कुछ सत्ता आ जाती; ऐसी सत्ता जिसपर केवल ब्राह्मणों का निय़ंत्रण था।

विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार हुआ, शराब की दुकानों का घेराव किया गया और विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई। 1921 से 1922 तक विदेशी कपड़ों का आयात घटकर आधा हो गया। आयात 102 करोड़ रुपए से घटकर 57 करोड़ रह गया। विदेशी कपड़ों के बहिष्कार से भारत में बने कपड़ों की मांग बढ़ गई।

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