असम आंदोलन संस्कृतिक अभिमान और आर्थिक पिछड़ेपन की मिली- जूली अभिव्यक्ति था I व्याख्या कीजिए I
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भारतीय राजनीति में असम आंदोलन क्षेत्रीय और जातीय अस्मिता जुड़े आन्दोलनों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस आंदोलन के दौरान असम के भू-क्षेत्र में बाहरी लोगों, खास तौर पर बांग्लादेश से आये लोगों को असम से बाहर निकालने के लिए ज़बरदस्त गोलबंदी हुई। इस आंदोलन की एक विशिष्टता यह ही थी कि इसे कई स्थानों पर ग़ैर-असमिया लोगों का भी समर्थन मिला। इसने राष्ट्रीय स्तर पर बहिरागतों के कारण स्थानीय समुदायों को होने वाली मुश्किलों और असुरक्षा-बोध के मसले पर रोशनी डाली। लेकिन इसके साथ ही इसने इस ख़तरे को भी रेखांकित किया कि भाषाई और सांस्कृतिक अस्मिता की परिभाषा जितनी संकुचित होती है, दूसरी भाषाओं और संस्कृतियों को अन्य या बाहरी घोषित करने की प्रवृत्ति मज़बूत होती चली जाती है।
असम में बाहर से आए हुए प्रवासी वहां की स्थानीय जनता के रोजगार को समाप्त कर रहे थो, इससे वहां की स्थानीय जनता के मन में प्रवासियों के लिए गुस्सा बढ़ रहा था। तेल चाय और कोयले जैसे प्राकृतिक संसाधनों की अधिकता होने के बाद भी असम में गरीबी और बेरोजगारी व्यापक स्तर पर उपस्थित थी, यहां की जनता ने यह माना कि असम के प्राकृतिक संसाधन असम से बाहर भेजे जा रहे हैं और इसका स्थानीय लोगों को कोई फायदा नहीं हो रहा है जिस कारण यहां के स्थानीय जनता में रोष फैल गया और एक आंदोलन के रूप में सामने आया।