अशोक स्तंभ कुत्र अस्ति
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सारनाथे
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यह स्तंभ इलाहाबाद किले के बाहर स्थित है। इसका निर्माण 16 वी शताब्दी में सम्राट अशोक द्वारा करवाया गया था।
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धर्मचक्र प्रवर्तन की घटना का स्मारक था और धर्मसंघ की अक्षुण्णता बनाए रखने के लिए इसकी स्थापना हुई थी। यह चुनार के बलुआ पत्थर के लगभग 45 फुट लंबे प्रस्तरखंड का बना हुआ है। धरती में गड़े हुए आधार को छोड़कर इसका दंड गोलाकार है, जो ऊपर की ओर क्रमश: पतला होता जाता है। दंड के ऊपर इसका कंठ और कंठ के ऊपर शीर्ष है। कंठ के नीचे प्रलंबित दलोंवाला उलटा कमल है। गोलाकार कंठ चक्र से चार भागों में विभक्त है। उनमें क्रमश: हाथी, घोड़ा, सांढ़ तथा सिंह की सजीव प्रतिकृतियाँ उभरी हुई है।
कंठ के ऊपर शीर्ष में चार सिंह मूर्तियाँ हैं जो पृष्ठत: एक दूसरी से जुड़ी हुई हैं। इन चारों के बीच में एक छोटा दंड था जो 32 तिल्लियों वाले धर्मचक्र को धारण करता था, जो भगवान बुद्ध के 32 महापुरूष लक्षणों के प्रतीक स्वरूप था | अपने मूर्तन और पालिश की दृष्टि से यह स्तंभ अद्भुत है। इस समय स्तंभ का निचला भाग अपने मूल स्थान में है। शेष संग्रहालय में रखा है। धर्मचक्र के केवल कुछ ही टुकड़े उपलब्ध हुए। चक्ररहित सिंह शीर्ष ही आज भारत गणतंत्र का राज्य चिह्न है।
चारों दिशाओं में गर्जना करते हुए चार शेर
बुद्ध धर्म में शेर को विश्वगुरु तथागत बुद्ध का पर्याय माना गया है | बुद्ध के पर्यायवाची शब्दों में शाक्यसिंह और नरसिंह भी है, यह हमें पालि गाथाओं में मिलता है | इसी कारण बुद्ध द्वारा उपदेशित धम्मचक्कप्पवत्तन सुत्त को बुद्ध की सिंहगर्जना कहा गया है |
ये दहाड़ते हुए सिंह धम्म चक्कप्पवत्तन के रूप में दृष्टिमान हैं | बुद्ध ने वर्षावास समाप्ति पर भिक्खुओं को चारों दिशाओं में जाकर लोक कल्याण हेतु बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का आदेश इसिपतन (मृगदाव) में दिया था, जो आज सारनाथ के नाम से विश्विविख्यात है | इसलिए यहाँ पर मौर्यसाम्राज्य के तीसरे सम्राट व सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र चक्रवर्ती अशोक महान ने चारों दिशाओं में सिंह गर्जना करते हुए शेरों को बनवाया था |
अशोक स्तंभ कुत्र अस्ति
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अशोक स्तंभः-------------- अस्ति ।
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