अशुद्धियों के विभिन्न प्रकार उदाहरण सहित समझाइए
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अशुद्धियों के विभिन्न प्रकार उदाहरण सहित इस प्रकार हैं...
- लेख अशुद्धियां : लेख अशुद्धियां वह अशुद्धियां होती हैं, जो लेनदेन की गलत खतौनी अथवा सहायक बहियों के गलत योग अथवा प्रारंभिक लेखा पुस्तकों में गलत अभिलेखन इत्यादि के कारण उत्पन्न होती हैं। जैसे उदाहरण के लिए श्रीजी ट्रेडर्स ने पिरामल ट्रेडर्स को ₹25000 का भुगतान किया। इसलिए इस भुगतान का रोकड़ बही में तो सही प्रकार से अभिलेखन हो गया, लेकिन खाता बही में खतौनी के समय पिरामल ट्रेडर्स के खाते में ₹25000 की जगह ₹2500 जमा लिख दिये गये। यह लेख अशुद्धि हुई। यह एक प्रकार की लिपिक अशुद्धि होती है और ऐसी अशुद्धियां तलपट में प्रतिबिंबित हो जाती हैं।
- लोप अशुद्धियां : लोप अशुद्धियां उस तरह की अशुद्धियां होती है, जो प्रारंभिक लेखे की बहियों में अभिलेखन के समय या खाता बही में खतौनी के समय उत्पन्न हो जाती हैं। लोप अशुद्धियां दो प्रकार की हो सकती हैं। पूर्ण लोप अशुद्धि और आंशिक लोप अशुद्ध। किसी प्रकार का लेन-देन तक बही में प्रविष्ट होने से पूरी तरह रह जाता है तो ऐसी अशुद्धि को पूर्ण लोप अशुद्धि कहते हैं। उदाहरण के लिए रमेश को अगर ₹10000 की रकम उधार दी जाती है, तो वह विक्रय की प्रविष्टि विक्रय वही खाते में ना लिखी जाए तो यह पूर्णलोप अशुद्धि हुई। आंशिक लोप अशुद्धि में लेनदेन की रकम बही में आंशिक रूप से रह जाती है। उदाहरण के लिए रमेश को ₹10000 की उधार दी गई। ये रकम उधार विक्रय बही की प्रविष्टि में दर्ज कर ली जाती है लेकिन विक्रय बही से खतौनी रमेश के खाते में दर्ज नहीं हो पाती, इस तरह की आंशिक लोप अशुद्धि हुई
- सैद्धांतिक अशुद्धियां : लेखांकन में जो भी प्रविष्ठियां की जाती है, वे लेखांकन सिद्धांतों के अनुसार ही अभिलेखित की जाती हैं और इन प्रविष्टियों के लेखांकन में यदि लेखांकन के सिद्धांतों का कोई उल्लंघन किया जाए तो इस तरह की अशुद्धियों को सैद्धांतिक अशुद्धियां कहा जाता है। उदाहरण के लिये यदि व्यवसाय की इमारत का विस्तार किया गया है, या एक और नयी इमारत ली गई है, तो किसी संपत्ति के विस्तार के नाम पर जो राशि व्यय की गई है उसे पूंजीगत व्यय माना जाता है और ये परिसंपत्ति खाते के नाम पक्ष में लिखा जाना चाहिए। लेकिन यदि इसकी जगह राशि रखरखाव व मरम्मत खाते के नाम पक्ष में लिख दी जाए तो सैद्धांतिक अशुद्धि बन जाएगी।
- क्षतिपूरक अशुद्धियां : जब दो या दो से अधिक अशुद्धियां इस तरह की हो जाती है कि उनका प्रभाव खातों के नाम पक्ष या जमा पक्ष पर नहीं पड़ता, तो ऐसी अशुद्धियों को क्षतिपूरक अशुद्धियां कहते हैं। उदाहरण के लिये क्रय राशि का जोड़ ₹10000 अधिक कर दिया गया और उसके फलस्वरुप क्रय बही खाते के नाम पक्ष में ₹10000 का अधिक विवरण लिख दिया गया, यह एक अशुद्धि हुई। दूसरी तरफ विक्रय का जोड़ ₹10000 कम लगाया गया और विक्रय वापसी बही खाते के नाम पक्ष में ₹10000 का कम विवरण लिखा गया, यह दूसरी प्रकार की शुद्धि हुई। यह दोनों अशुद्धियां ऐसी हुई जिनका शुद्ध प्रभाव नगण्य हो जा रहा है, क्योंकि एक अशुद्धि का अधिकता दूसरी अशुद्धि के घाटे को पूर्ण कर रही है, इसलिए दोनों अशुद्धियों का प्रभाव शून्य हो जाता है और क्षतिपूर्ति हो जाती है। इस तरह यह अशुद्धियां क्षतिपूरक अशुद्धियों की श्रेणी में आती हैं।
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अशुद्धियों के विभिन्न प्रकार बताइए
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