अश्वमेध यज्ञ कः कृतवान्
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अश्वमेध भारतवर्ष के एक प्रख्यात प्राचीनकालीन यज्ञ का नाम है । 'सार्वभौम राजा' अर्थात् एक चक्रवर्ती नरेश ही अश्वमेध यज्ञ करने का अधिकारी माना जाता था, [1]परन्तु ऐतरेय ब्राह्मण (8 पंचिका) के अनुसार इस को समपन्न करने के लिए अन्य महत्वशाली राजन्यों को भी अधिकार था। आश्वलायन श्रौत सूत्र (10। 6। 1) का कथन है कि जो सब पदार्थो को प्राप्त करना चाहता है, सब विजयों का इच्छुक होता है और समस्त समृद्धि पाने की कामना करता है वह इस यज्ञ का अधिकारी है। इसलिए सार्वीभौम के अतिरिक्त भी मूर्धाभिषिक्त राजा अश्वमेध कर सकता था (आपस्तम्ब श्रौतसूत्र 20। 1। 1।; लाट्यायन 9। 10। 17)।
Explanation:
यह अति प्राचीन यज्ञ प्रतीत होता है क्योंकि ऋग्वेद के दो सूक्तों में (1। 162 तथा 1। 163) में अश्वमेध यज्ञ में प्रयुक्त अश्व तथा उसमें किए जाने वाले हवन का विशेष विवरण दिया गया है। शतपथ (13। 1-5) तथा तैतिरीय ब्राह्मणों (3। 8-9) में इसका बड़ा ही विशद वर्णन उपलब्ध है जिसका अनुसरण श्रौत सूत्रों, वाल्मीकीय रामायण (1। 13), महाभारत के आश्वमेधिक पर्व में[2] तथा जैमिनीय अश्वमेध में किया गया है