अश्वत्थामा ने पांडवी और धृत्तद्युम्न को मारने की क्या
योजना बनाई
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युद्ध के अठारहवें दिन दुर्योधन ने रात्रि में उल्लू और कौवे की सलाह पर अश्वत्थामा को सेनापति बनाया था। उस एक रात्रि में ही अश्वत्थामा ने पांडवों की बची लाखों सेनाओं, पुत्रों और गर्भ में पल रहे पांडवों के पुत्रों तक को मौत के घाट उतार दिया था। अश्वत्थामा के इस नरसंहार के बाद पांडवों में विरक्ति का भाव आ गया था। वे जीतकर भी हार गए थे। उनका सब कुछ नष्ट हो गया था। यही कारण था कि श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को 3,000 वर्षों तक कोढ़ी के रूप में रहकर भटकने का शाप दे दिया था।
यदि दुर्योधन पहले ही अश्वत्थामा को सेनापति बना देता तो वह खुद भी नहीं मरता और पांडवों पर जीत भी दर्ज कर चुका होता, हालांकि यह काम अश्वत्थामा ने युद्ध की समाप्ति पर किया था। जब अश्वत्थामा द्वारा किए गए इस नरसंहार का पता दुर्योधन को चला था तो उसने सुकून की सांस ली।
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महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद अश्वत्थामा ने छल से पांडवो को मारने की योजना बनाई. वो पांडवो के शिविर में गया. वहां द्रोपदी के पांचों बेटे सो रहे थे. अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर अंधेरे में मार दिया।