अष्टछाप में किस प्रकार के कवि सम्मिलित थे
Answers
Answer: कृष्ण भक्ति शाखा के प्रचारकों में अष्टछाप के कवियों का महत्वपूर्ण स्थान है | पुष्टिसंप्रदाय की स्थापना करने वाले श्री वल्लभाचार्य (इनका जन्म छत्तीसगढ़ के चंपारण नामक स्थान में हुआ था | ) ने शुद्धाद्वैतवाद चलाया था । इनकी उपासना की पद्धति पुष्टिमार्ग के नाम से जानी जाती है । पुष्टिमार्ग में भगवान के अनुग्रह अर्थात कृपा को पाने पर अत्यधिक जोर दिया गया है ।
वल्लभ संप्रदाय के इस पुष्टिमार्ग में अनेक भक्त कवियों ने दीक्षित होकर कृष्ण भक्ति का प्रचार-प्रसार किया । वल्लभाचार्य द्वारा प्रवर्तित पुष्टिमार्ग उनके पुत्र गोसाईं विट्ठलनाथजी के प्रयत्नों से अधिक विकसित हुआ । विट्ठल नाथ(गोसाईजी) ने अपने पिता वल्लभाचार्य के चौरासी (84)शिष्यों में से चार तथा अपने दो सौ बावन (252) शिष्यों में से चार को लेकर आठ प्रसिद्ध भक्त कवि संगीतज्ञों की स्थापना की । ये अष्टछाप के नाम से प्रसिद्ध है । वल्लभाचार्य के चार शिष्य थे : 1. सूरदास 2. कृष्णदास 3. परमानंद दास 4. कुंभनदास । गोस्वामी विट्ठलनाथ अर्थात गुसाईजी के चार शिष्य थे : 1. गोविंदस्वामी 2. छीत स्वामी 3. चतुर्भुजदास 4. नंददास ।
ये आठों भक्त कवि दिन के आठों प्रहर के अनुसार उसी क्रम में कृष्ण का गुणगान अपने पदों (इन्हें कीर्तन भी कहते है जो संगीत की विभिन्न रागों मे आबद्ध है |) द्वारा करते थे । अष्टछाप के इन कवियों को वल्लभ संप्रदाय में कृष्ण के अष्टसखा भी कहा जाता है । इनमें सर्वप्रथम स्थान सूरदास का है । इन कवियों का जीवन परिचय चौरासी वैष्णवन की वार्ता तथा दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता में मिलता है । इन सभी कवियों ने अपने पदों में कृष्ण भक्ति का परिचय उनकी विविध लीलाओं का गुणगान करके दिया है |