Ashok vatika samvad hanuman parichay to seeta mata lanka
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विभीषण द्वारा दिए संकेत के अनुसार हनुमान जी अशोक वाटिका की चारदीवारी के पास जा पहुंचे । वहाँ भयानक और सशस्त्र राक्षसों का पहरा था । उन से बचने के लिए हनुमान जी ने एक छोटे वानर का रूप बनाया और कूदकर चारदीवारी पर चढ़ गए ।
किसी ने भी उनकी ओर ध्यान नहीं दिया । वे चारदीवारी से नीचे उतर आए और अशोक वाटिका में घूमने लगे । कभी वे पेड़ पर चढ़ जाते तो कभी किसी झाड़ी के पीछे छिप जाते । इस प्रकार अपने आपको राक्षसों की नजरों से बचाकर वे सीता जी की खोज में लगे रहे ।
अशोक वाटिका एक अति सुंदर उद्यान था, जो कि लंकेश्वर रावण के राजमहल के साथ लगा हुआ था । उसमें तरह-तरह के सुंदर फूलों और स्वादिष्ट फलों की बहुतायत थी । उन फलों को देखकर हनुमान जी को भूख सताने लगी । परंतु उन्होंने अपनी भूख पर अंकुश लगाया और वे आगे बड़े ।
थोड़ा आगे जाने पर उन्होंने एक वट वृक्ष के नीचे बहुत-सी सशस्त्र कुरूप राक्षसियों को एक दुबली-पतली गौरवर्ण युवती को घेरकर बैठे देखा । उस युवती के चेहरे पर अपूर्व तेज था । अलंकार विहीन होने पर भी वह दीपशिखा की भांति प्रदीप्त थी । उसके चेहरे पर उदासी की छाया पड़ी हुई थी ।
जैसे रोते-रोते उसके अश्रु गालों पर सूख गए हों । हनुमान जी तत्काल समझ गए कि हो न हो ये ही सीता माता हैं । उनके हृदय में मातृत्व के प्रति आदरभाव जाग्रत हो गया । वे एक पेड़ पर चढ़कर दूसरे पर और दूसरे से तीसरे पर कूदते हुए उस वट वृक्ष पर जा कूदे और उन्होंने अपने आपको अच्छी तरह से पत्तों के बीच छिपा लिया । वहां बैठकर वे नीचे का दृश्य देखने लगे ।
जगदम्बा सीता को देखकर हनुमान जी के हृदय में रोमांच-सा हो आया । वे उन्हें साक्षात वात्सल्य, शोक और पवित्रता की साकार मूर्ति प्रतीत हो रही थीं । राक्षसियां, जो उन्हें घेरे बैठी थीं, उन्हें तरह- तरह से डरा-धमका रही थीं ।
उन सबकी बातों का एक ही अर्थ था कि वे रावण की भार्या बनना स्वीकार कर लें । रावण उन्हें राजरानी बनाकर रखेगा । हनुमान जी के जी में आया कि वे नीचे कूदकर इन सभी राक्षसियों को मुष्टिका प्रहार से मार डालें । परंतु अभी वे श्रीराम का संदेश उन्हें नहीं दे पाए थे । इसीलिए वे चुप बैठकर उस अवसर की प्रतीक्षा करते रहे कि कब ये राक्षसियां यहां से हटे तो वे उन्हें श्रीराम का संदेशा दें
किसी ने भी उनकी ओर ध्यान नहीं दिया । वे चारदीवारी से नीचे उतर आए और अशोक वाटिका में घूमने लगे । कभी वे पेड़ पर चढ़ जाते तो कभी किसी झाड़ी के पीछे छिप जाते । इस प्रकार अपने आपको राक्षसों की नजरों से बचाकर वे सीता जी की खोज में लगे रहे ।
अशोक वाटिका एक अति सुंदर उद्यान था, जो कि लंकेश्वर रावण के राजमहल के साथ लगा हुआ था । उसमें तरह-तरह के सुंदर फूलों और स्वादिष्ट फलों की बहुतायत थी । उन फलों को देखकर हनुमान जी को भूख सताने लगी । परंतु उन्होंने अपनी भूख पर अंकुश लगाया और वे आगे बड़े ।
थोड़ा आगे जाने पर उन्होंने एक वट वृक्ष के नीचे बहुत-सी सशस्त्र कुरूप राक्षसियों को एक दुबली-पतली गौरवर्ण युवती को घेरकर बैठे देखा । उस युवती के चेहरे पर अपूर्व तेज था । अलंकार विहीन होने पर भी वह दीपशिखा की भांति प्रदीप्त थी । उसके चेहरे पर उदासी की छाया पड़ी हुई थी ।
जैसे रोते-रोते उसके अश्रु गालों पर सूख गए हों । हनुमान जी तत्काल समझ गए कि हो न हो ये ही सीता माता हैं । उनके हृदय में मातृत्व के प्रति आदरभाव जाग्रत हो गया । वे एक पेड़ पर चढ़कर दूसरे पर और दूसरे से तीसरे पर कूदते हुए उस वट वृक्ष पर जा कूदे और उन्होंने अपने आपको अच्छी तरह से पत्तों के बीच छिपा लिया । वहां बैठकर वे नीचे का दृश्य देखने लगे ।
जगदम्बा सीता को देखकर हनुमान जी के हृदय में रोमांच-सा हो आया । वे उन्हें साक्षात वात्सल्य, शोक और पवित्रता की साकार मूर्ति प्रतीत हो रही थीं । राक्षसियां, जो उन्हें घेरे बैठी थीं, उन्हें तरह- तरह से डरा-धमका रही थीं ।
उन सबकी बातों का एक ही अर्थ था कि वे रावण की भार्या बनना स्वीकार कर लें । रावण उन्हें राजरानी बनाकर रखेगा । हनुमान जी के जी में आया कि वे नीचे कूदकर इन सभी राक्षसियों को मुष्टिका प्रहार से मार डालें । परंतु अभी वे श्रीराम का संदेश उन्हें नहीं दे पाए थे । इसीलिए वे चुप बैठकर उस अवसर की प्रतीक्षा करते रहे कि कब ये राक्षसियां यहां से हटे तो वे उन्हें श्रीराम का संदेशा दें
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