अट नही रही है। का सार
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अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
इस कविता में कवि ने वसंत ऋतु की सुंदरता का बखान किया है। वसंत ऋतु का आगमन हिंदी के फगुन महीने में होता है। ऐसे में फागुन की आभा इतनी अधिक है कि वह कहीं समा नहीं पा रही है।
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अट नहींं रही है कविता का सार
Explanation:
धधध
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