अति से तो अमृत भी जहर बन जाता है
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what's the question???
अति से अमृत भी जहर बन जाता है
किसी भी बात की एक मर्यादा होती है। किसी भी आचरण की एक मर्यादा होती है। यदि एक मर्यादा के दायरे में रहकर कार्य किया जाए तो उसके श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होते हैं, लेकिन मर्यादा से बाहर बैठकर अति कर दी जाए तो दुष्परिणाम भी प्राप्त हो सकते हैं। इसलिए यह कहावत किि अति से अमृत भी विष बन जाता है, बिल्कुल सटीक है।
संसार का हर नियम एक मर्यादा के दायरे में बंधा है, उस मर्यादा से बाहर जाने अति कहलाता है और अति हो जाने पर उसकी सकारात्मक परिणाम समाप्त हो जाते हैं और वह नकारात्मकता में परिवर्तित होकर नकारात्मक परिणाम की ओर चला जाता है। उदाहरण के लिए व्यवहार में मिठास लाना अच्छे आचरण का प्रतीक है, लेकिन बहुत अधिक मिठास चापलूसी का प्रतीक है। वही थोड़ा बहुत क्रोध कर लेना मानव की स्वाभाविक वृत्ति है, लेकिन बात-बात पर क्रोध करना और हर समय क्रोधित होना अहंकार की का प्रतीक है और यह हमारा नुकसान ही करता है।
संसार के सारे कार्य एक निश्चित सीमा तक करना ही उत्तम है चाहे कितने भी अच्छे कार्य क्यों ना हों। इन कार्यों की सीमा लांघने का प्रयास करेंगे तब हो सकता है कि हमारा कार्य अपनी सकारात्मकता के दें और हमें उससे नकारात्मकता ही प्राप्त हो। इसलिए अति से अमृत भी विष बन जाता है, इस बात में कोई संशय नही।