अतिशय का क्या अर्थ है
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अतिशय १ वि० [सं०] बहुत । ज्याता । अत्यंत ।
अतिशय २ संज्ञा० पु० प्राचीन शास्त्रकारों के अनुसार । एक अलंकार । विशेष— इसमें किसी वस्तु की उत्तरोत्तर संभावना या असंभवना दिखलाई जाती है जैसे—'ह्वै न, होय तो थिर नहीं, थीर तो बिन फलवान । सत्पुरुषन को कोप है, खल की प्रीति सभान; (शब्द०) । कोई कोई इस अलंकार को अधिक अलंकार के अंतर्भुक्त मानते हैं ।
अतिशय वि० [सं० अतिशयिन्] १. प्राधान । श्रेष्ठ० २. बहुत अधिक [को०] ।
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