अतिथि यज्ञ की परीक्षा में उत्तीण होने के बाद राजा रन्तिदेव के मुख से क्या शब्द निकले?
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me bhi yhi kr rha hu 8th ka paper h na
प्रश्न :- अतिथि यज्ञ की परीक्षा में उत्तीण होने के बाद राजा रन्तिदेव के मुख से क्या शब्द निकले ?
उतर :-
कथा :- राजा रन्तिदेव दया के मुर्तिमान स्वरूप थे । वह प्रतिदिन भूखों को खाना खिला कर ब्राह्मणो को लाखों का दान किया करते थे l कुछ समय बाद दान बाटते - 2 जब उनका राजकोष खाली हो गया, तो वह जंगल में चले गए l एक बार उन्हें अन्न क्या पीने के लिए जल की एक बूंद भी नही मिली परिवारसहित उन्हें बिना कुछ खाये पिये 48 दिन व्यतीत हो गये । 49वें दिन महाराज रन्तिदेव को कहीं से खीर हलवा और जल प्राप्त हुआ । परंतु उन्होंने वह भोजन भी आने वाले ब्राम्हाण , शूद्र तथा एक व्यक्ति के कुत्तों को खिला दिया l उनकी यह दया भावना देख कर भगवान खुश हुए और उन्हें दर्शन दे कर इच्छानुसार वर मांगने को कहा l
तब रन्तिदेव के मुख से शब्द निकलते है :- "मैं आपसे अष्टसिद्धि या मोक्ष की कामना नहीं करता । मेरी आपसे इतनी ही प्रार्थना है कि समस्त प्राणियों के अन्त के कारण स्थित होकर मैं ही उनके दु:खों को भोग लूँ, जिससे सब दु:खरहित हो जाए l"
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