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अति उत्साहित है। धरती से सोना उपनामला।
हम प्रभात की नई किरण बन
नई ज्योति बिखराएँगे।
कण-कण को, तृण-तृण को मोती
माणिक-सा चमकाएँगे।
1
॥
हम तरु-तरु के नए सुमन बन
उपवन नया सजाएँगे।
नूतन मधु, मकरंद, सुरभि के
कण सर्वत्र लुटाएँगे।
हम भ्रमरों के नव गुंजन बन
नूतन स्वर में गाएँगे।
कली-कली का, फूल-फूल का
आनन, हृदय खिलाएंगे।
हम लहरों की नव उमंग बन
सरिता नई बहाएँगे।
सिंचित कर मिट्टी के कण-कण
हम सोना उपजाएँगे।
व
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