Hindi, asked by ayushjohari25, 10 months ago

अद्यापक दिवस पर अध्यापक के लिए पत्र

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Answered by shrawanihukre
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Answer:

आदरणीय डी. आर. बिरादर सर,

नमस्कार।

मुझे नहीं पता कि यह खत आप तक पहुँचेगा की नहीं क्योंकि मुझे आपका पता ही मालूम नहीं हैं। शिक्षक दिन पर मेरी ईश्वर से प्रार्थना हैं कि किसी न किसी माध्यम से यह पत्र आप तक ज़रुर पहुंचे ताकि आपको अपनी एक छात्रा के आपके प्रति विचार पता चल सके। मैं आपको मेरा शादी के पहले का नाम या उपनाम दोनों नहीं बताउंगी । सिर्फ़ एक क्लू देती हूं। मैं तेल्हारा में आपसे सबसे ज्यादा गणित के सवाल पूछने वाली छात्रा हूं। मुझे पूरा विश्वास हैं कि बस इतने से क्लू से ही आप मुझे पहचान लेंगे! आपने मुझे लगभग 34 साल पहले कक्षा 9 वी से 12 वी तक गणित पढ़ाया था। इतने सालों बाद भी आपकी याद बनी हुई हैं क्योंकि मेरी जिंदगी को संवारने में आपका बहुत बड़ा योगदान हैं। मैं आपको कभी नहीं भूल सकती!

आप बहुत अच्छे और ग़जब के शिक्षक हैं। अब तक सरकारी नियमों के मुताबिक आप रिटायर हो चुके होंगे। नियमों के मुताबिक आप ज़रुर रिटायर हुए होंगे लेकिन मुझे पूरा विश्वास हैं कि अभी भी समाज को शिक्षित करने का आपका कार्य अनवरत चालू होगा...क्योंकि आप जैसे शिक्षक कभी रिटायर नहीं हो सकते! हर शिक्षक बंधे-बंधाये ढांचे में स्कूल में अपने-अपने विषय का सिलैबस पढ़ाते हैं। उसमें कोई नई बात नहीं हैं। आप में नई और अनोखी बात यहीं थी कि आप सिलैबस के साथ-साथ विद्यार्थी को व्यक्तिगत तौर पर जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते थे। इसी कारण सभी को आपसे व्यक्तिगत रुप से जुड़ाव महसूस होता था। काश, हर शिक्षक आप ही की तरह हो...क्योंकि आज के दौर में तो विद्यार्थियों को व्यक्तिगत प्रोत्साहन की कुछ ज्यादा ही जरुरत हैं!

कितना तंग करती थी न मैं आपको...जब देखो तब अपनी गणित की समस्याएं लेकर आपके पास जा टपकती। जिंदगी के इस पड़ाव पर आकर यह बात समझ में आई हैं कि हर सवाल का जबाब नहीं मिल सकता। जिंदगी में कई सवाल ऐसे आते हैं कि उन्हें वहीं की वहीं अनसुलझा छोड़ कर हमें आगे बढ़ना पड़ता हैं। अब कभी-कभी सोचती हूं कि कैसा भूत सवार रहता था उन दिनों मेरे उपर...। चाहे कोई भी सवाल हो...जब-तक उसका सही और सटीक जबाब नहीं मिलता मेरे घडी की सुई जहां की वहां अटक जाती थी। न मैं खुद चैन से रहती और न ही आपको रहने देती। कक्षा 11 वी और 12 वी में तो गणित की कई लेखकों की किताबें थी। मेरी कोशिश रहती कि मैं हर लेखक की (चाहे वह वैद्य, केळकर, उखळकर आदि कोई भी हो) किताब में का हर गणित छुडाऊ। इसी कोशिश में मुझे समस्याएं भी ज्यादा आती थी। कभी-कभी मन में विचार आता था कि मैं ने ट्युशन तो लगाई नहीं और जब देखों तब आपको तंग करती रहती हूं। एक बार यहीं बात जब आपसे कही तो आपने जो जबाब दिया वो सुन कर तो मेरी बल्ले-बल्ले हो गई। क्योंकि अब मैं निसंकोच होकर आप से सवाल पूछ सकती थी। आप ने कहा था, ''शिक्षक तो राह ही देखते रहते हैं कि उनके छात्र उनसे सवाल पूछे। लेकिन ज्यादातर छात्र ट्युशन लगा लेते हैं और सोचते हैं कि हमने ट्युशन लगाई हैं तो हमें बिना ज्यादा दिमाग लगाए हर सवाल का जबाब मिल जाना चाहिए। इस चक्कर में ट्युशन वाले बच्चे मेहनत कम करते हैं अत: सवाल भी कम ही पुछते हैं। स्कूल में और ट्युशन पर पढ़ा-पढ़ा कर हमें पूरी किताबे कंठस्थ हो जाती हैं। इसलिए हम अब किताबे खोल कर पढ़ते ही नहीं। तुम जो सवाल पुछती हो उनके लिए कई बार मुझे किताबे खोल कर पढ़नी पड़ती हैं। तो मुझे भी अच्छा लगता हैं।''

आप और आंटी (आपकी पत्नी) दोनों का मुझे ढ़ेर सारा स्नेह और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। मेरी जिंदगी में आपकी कितनी अहमियत थी यह इसी बात से साबित होता हैं कि मुझे डॉक्टर बनने में रत्तिभर भी दिलचस्पी न होने के बावजूद सिर्फ़ आपके कहने पर मैंने कक्षा 11वी-12वी में विज्ञान विषय लिया था। क्योंकि आपकी हार्दिक इच्छा थी कि मैं डॉक्टर बनूं! अब कई बार सोचती हूं तो विश्वास ही नहीं होता कि कैसे कोई शिक्षक अपने छात्र पर इतनी मेहनत कर सकता हैं? मेरा मार्गदर्शक बनने, मुझे प्रेरित करने और मुझे वो बनाने के लिए जो मैं आज हूं...आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, सर!

-आपकी एक पसंदीदा छात्रा

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