Hindi, asked by mohdishaqkhan830, 11 months ago

अथवा
हमारै हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी
जामत सोवत स्वप्न दिवस-निसि कान्ह-कान्ह जकरी
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए देखी सुनी न करी।।
यह तौ “सूर तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी।
उपरोक्त पद्यांश को पढ़कर निम्न प्रश्नों के उत्तर लिखिए -
(क) गोपियाँ अपने हरि की तुलना हारिल की लकड़ी से क्यों करती है ?
(ख) इस पद का भाव सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
(ग) गोपियाँ दिन-रात, सोते-जागते किस भाव में डूबी रहती है ?​

Answers

Answered by raghvendra4533
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Answer:

गोपियां अपने हरी की तुलना हरिल की लकड़ी से इसलिए कर रही हैं क्योंकि जिस प्रकार हारिल पछी अपनी लकड़ी को पकड़े रहता है उसी प्रकार हम भी अपने हरी से प्रेम करते हैं।

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