अथवा मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ, शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ, हो जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर, मैं वह खण्डहर का भाग लिए फिरता हूँ।
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मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हो जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर, मैं
वह खण्डहर का भाग लिए फिरता हूँ।
संदर्भ ⦂ यह पंक्तियां हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘आत्म परिचय’ कुदरत की गई है। इन पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है...
भावार्थ ⦂ कवि बच्चन कहते हैं कि वह अपने किसी अनजाने प्रियतम की याद अपने हृदय में छुपाए जी रहे हैं। कवि का वो प्रियतम का नाम ईश्वर है। वो ईश्वर की याद में अपने में समेटे हुए हैं अपने उस प्रियतम अर्थात ईश्वर के वियोग में कवि का ह्रदय भी और व्याकुल होता है और व्याकुलता के कारण कभी का रुदन गीतों के माध्यम से सबके सामने प्रकट हो रहा है।
कवि द्वारा रचित यह गीत भले ही सुनने में मधुर और शीतल दिखायी पड़ते हों। लेकिन इन गीतों के पीछे कवि की विरह वेदना छुपी हुई है। कवि अपने घर के सामान जीवन से संतुष्ट है और अपने बेसिक जीवन के सामने राज महल के सुखद राजभरों के सुख को भी ठुकरा सकता है कभी कि अपने प्रियतम के लिये राजमहल के तमाम सुखों को ठुकरा सकता है। कवि का जीवन खंडहर के समान है, लेकिन कवि अपने प्रियतम के लिये अपना सब कुछ न्योछार कर सकता है।
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