अथवा
देशज और विदेशज प्रजातियों से आप क्या समझते
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हिन्दी या इसकी उपभाषाओं में प्रयुक्त वैसे शब्द, जिनका जन्म स्थानीय या देश में आंतरिक तौर पर हुआ है। इन शब्दों को आम बोल चल की भाषा में प्रयोग किया जाता है। इनमे शब्दों में क्षेत्रीय बदलाव दिखाई देता है। जैसे- लोटा, थाली, सोंटा, चमड़ी , दमडी ,पगड़ी ,गमछा आदि।
वे प्रजातियाँ जो स्थानीय आवास की मूल जैव प्रजाति नहीं हैं, लेकिन उस तंत्र में स्थापित की गई हैं, इन्हें विदेशज प्रजातियाँ कहा जाता है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब विदेशज प्रजातियों के आगमन से परितंत्र में प्राकृतिक या मूल जैव समुदाय को व्यापक नुकसान हुआ।
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