अधोलिखितानि प्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत-(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पूर्ण वाक्य में लिखिए)
(क) पाठेऽस्मिन् सुखदु:खयोः किं लक्षणम् उक्तम्?
(ख) वर्षशतैः अपि कस्य निष्कृतिः कर्तुं न शक्या?
(ग) ""त्रिषु तुष्टेषु तपः समाप्यते"" – वाक्येऽस्मिन् त्रयः के सन्ति?
(घ) अस्माभिः कीदृशं कर्म कर्तव्यम्?
(ङ) अभिवादनशीलस्य कानि वर्धन्ते?
(च) सर्वदा केषां प्रियं कुर्यात्?
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अधोलिखितानि प्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन :
(क) पाठेऽस्मिन् सुखदु:खयोः किं लक्षणम् उक्तम्?
उत्तर : पाठानुसारं सर्वं परवशं दुःखम्, सर्वं आत्मवशं च सुखं भवति ।
(ख) वर्षशतैः अपि कस्य निष्कृतिः कर्तुं न शक्या?
उत्तर :नृणां सम्भवे मातापितरौ यं कष्टं सहेते तस्य वर्षशतैः अपि निष्कृतिः कुर्तं न शक्या।
(ग) "त्रिषु तुष्टेषु तपः समाप्यते" – वाक्येऽस्मिन् त्रयः के सन्ति?
उत्तर : "त्रिषु तुष्टेषु तपः समाप्यते" - वाक्येऽस्मिन् त्रयः - भ माता, पिता, आचार्य च सन्ति ।
(घ) अस्माभिः कीदृशं कर्म कर्तव्यम्?
उत्तर : यत् कर्म कुर्वत: परितोषः स्यात् तत् कर्म कर्तव्यम्।
(ङ) अभिवादनशीलस्य कानि वर्धन्ते?
उत्तर : अभिवादनशीलस्य आयुः, विद्या, यशः, बलं चेति चत्वारि वर्धन्ते।
(च) सर्वदा केषां प्रियं कुर्यात्?
उत्तर : सर्वदा मातापित्रोः आचार्यस्य च प्रियं कुर्यात्।
कुछ अतिरिक्त जानकारी :
यह प्रश्न पाठ नीति नवीनतम् - नीति वचन रूपी नवनीत से लिया गया है।
नीतिनवीनतम् मनुस्मृति किस लोगों का संग्रह है जो सदाचार के लिए अत्यंत जरूरी है। इस पाठ में माता पिता तथा हमारे गुरुजनों को आदर और सेवा से खुश करने वाले मनुष्य को मिलने वाले फायदे को बताया गया है।
इस पाठ में अच्छे रास्ते में चलने तथा बुरे कामो को त्यागने आदि शिष्टाचारों का भी वर्णन है।
इस पाठ से संबंधित कुछ और प्रश्न :
अधोलिखितानि प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत-(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक पद में लिखिए)
(क) नृणां संभवे कौ क्लेशं सहेते?
(ख) कीदृशं जलं पिबेत्?
(ग) नीतिनवनीतम् पाठः कस्मात् ग्रन्थात् सङ्कलित?
(घ) कीदृशीं वाचं वदेत्?
(ङ) उद्यानम् कैः निनादैः रम्यम्?
(च) दु:खं किं भवति?
(छ) आत्मवशं किं भवति?
(ज) कीदृशं कर्म समाचरेत्?
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स्थूलपदान्यवलम्बय प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(स्थूल पद का अवलम्बन करते हुए प्रश्न निर्माण कीजिए-)
(क) वृद्धोपसेविनः आयुर्विद्या यशो बलं न वर्धन्ते।
(ख) मनुष्य सत्यपूतां वाचे वदेत्।
(ग) त्रिषु तुष्टेषु सर्वं तपः समाप्यते।
(घ) मातापितारौ नृणां सम्भवे भाषया क्लेशं सहेते।
(ङ) तयोः नित्यं प्रियं कुर्यात्।।
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