अधोलिखिते श्लोके अलङ्कार निर्देशं कृत्वा लक्षणेन संगमयत्। (निम्नलिखित श्लोक में अलंकार बताकर लक्षण के साथ मिलाइए-)
रथं शरीरं पुरुषस्य राजन्नात्मा नियतेन्द्रियाण्यस्य चाश्वाः।
तैरप्रमत्तः कुशली सदश्वैर्यान्त सुखं याति रथीव धीरः॥
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श्लोकेऽस्मिन् रूपकः अलङ्कारः। (इस श्लोक में रूपक अलंकार है।)
लक्षणम् – तद्रूपकमभेदो य उपमानोपमेययोः। अत्यन्त सादृश्येन यत्र उपमानोपमेययोः अभेदो जायते तत्र रूपक अलङ्कारः भवति।
सङ्गतिः – श्लोके अस्मिन् रथः नियन्ता अश्वाः इति पदानि क्रमशः शरीरस्य आत्मानः इन्द्रियाणां च उपमानपदानि सन्ति। अत्र उपमानोपमेययोः अभेदः वर्तते अत: अत्र रूपक: अलंकारः शोभते।
(अत्यन्त सादृश्य के कारण यहाँ उपमान और उपमेय में अभेद बताया जाये वहाँ रूपक अलङ्कार होता है। इस श्लोक में रथ, नियन्ता और अश्व पद क्रमशः शरीर, आत्मा और इन्द्रियों के उपमान हैं। यहाँ उपमान और उपमेयों में अभेद है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।)
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