अधोलिखितस्य गद्यांशस्य सप्रसंग हिन्दी भाषायाम् अनुवादं करोतु महाराजस्य सूरजमल्लस्य जन्म वसन्तपञ्चम्याम् (१३ फेब्रवरी-दिने) १७०७ तमे ईस्वीयवर्षे अभवत्। स हि महाराजस्य बदनसिंहस्य ज्येष्ठपुत्रः तस्योत्तराधिकारी चासीत्। सूरजमल्लस्य अपरम् एकं नाम सुजानसिंह: इत्यासीत्। अष्टादशः शताब्दस्य भारतस्य नायकेषु अन्यतमः आसीत् सूरजमल्लः। तस्य जनिः तदा अभूत् यदा भारतदेशस्य राजनीतिः अत्यन्तं दोलायमाना आसीत्, भारतं च विंध्वंसक-शक्तीनां बाहुपाशे सर्वथा निबद्धम् आसीत्। नादिरशाहः, अहमदशाह अब्दाली इत्येताभ्यां पापिभ्याम् उत्तर-भारते महता प्रमाणेन नरवधाः गोवधाश्च क्रियन्ते स्म, तीर्थानि मन्दिराणि च विध्वस्तानि क्रियन्ते स्म भारतं लुण्ठितुम् आगच्छतः बाह्याक्रमणकारिणः निरोद्धं न कोऽपि शासकः सज्ज: आसीत्।
अथवा
एवं विभाव्य बिलद्वारं गत्वा तम् आहूतवान्–एहि, एहि प्रियदर्शन, एहि ! तच्छुत्वा सर्पोऽचिन्तयत्-‘य एषः माम् आह्वयति, न स स्वजातीयः। यतो नैषा सर्पवाणी। तदत्रैव दुर्गे स्थितस्तावद् वेद्मि-कोऽयमिति ?" आह च* भोः को भवान् ?’ स आह_ "भोः गङ्गदत्तो नाम मण्डूकाधिपतिः त्वत्सकाशे मैत्र्यर्थमभ्यागतः।" तच्छ्रुत्वा सर्प आह* भो अश्रद्धेयमेतत् यत् तृणानां वह्निना सह संगमः।"
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महाराजा सूरजमल का जन्म वसन्त पंचमी में 1909 इस्वी में हुआ।वह ही महाराजा ब्दनसिंह के ज्येष्ठ पुत्र और उनके उतराधिकारी भी थे।सूरजमल का दूसरा नाम सुजनसिंह भी था।18 वी शताब्दी में भारतीय नायकों के सूरजमल सर्वश्रेष्ठ थे।उनके जन्म के समय भारत देश की राजनीति भूत खराब थी,भारत हमेशा अनेक शक्तियों के जाल में फस हुआ था। नादिरशाह और अहमद शाह अब्दाली ने नर वध और गो वध जैसे पाप फेला रखे थे । तीर्थों और मंदिरों को नष्ट कर दिया था।
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महाराज सूरजमल का जन्म 13 फरवरी 1907 को बसंत पंचमी के दिन हुआ था। वही महाराज बदन सिंह का जेष्ठ पुत्र और उसका उत्तराधिकारी था। सूरजमल का दूसरा एक नाम सुजान सिंह था।
18 वीं शताब्दी के भारत के नायकों में सूरजमल दूसरा था। उसका जन्म तब हुआ जब भारतवर्ष की राजनीति में बहुत ही उतार-चढ़ाव था और भारतवर्ष आक्रमणकारियों के जाल में बंधा हुआ था। नादिरशाह, अहमद शाह अब्दाली इत्यादि पापियों ने उत्तर भारत में बहुत से मनुष्यों को और गायों को मार दिया था।
तीर्थों और मंदिरों को नष्ट करते थे और भारत को लूटने आते थे। बाहरी आक्रमणकारियों को रोकने के लिए भारत का कोई भी राजा समर्थ नहीं था।