अध्यापक जी कक्षा में विद्यार्थियों बताती है कि धरती की दैनिक गति के कारण जल में थल समीर और स्थानीय वह अपने भाई अथवा दाएं और झुकती है इस प्रक्रिया की खोज किसने की थी
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===>>> सामान्य आदमी के लिए पवन का अर्थ मंद-मंद बहने वाली बयार भी हो सकता है और तबाही का तांडव नृत्य करने वाला चक्रवात भी; मन को प्रफुल्लित कर देने वाली समीर भी हो सकता है और रेगिस्तान के धूल भरे अंधड़ भी; तपती दोपहरी की लू भी हो सकता है और जीवनदायनी वर्षा लाने वाला मानसून भी। परंतु मौसम-वैज्ञानिक की दृष्टि से “पवन” बहती हुई पवन है जिसमें ऊर्जा कूट-कूट कर भरी होती है। यह ऊर्जा अत्यंत विलक्षण कार्य कर सकती है और वास्तव में करती भी है। वह सागर के पानी की अत्यंत विशाल मात्रा को, इतनी विशाल मात्रा को- जितनी पृथ्वी की किसी भी नदी में नहीं है- बहा कर, हजारों किमी. दूर ले जा सकती है, एक क्षण में आकाश को मेघों से पूरी तरह ढंक सकती है तो दूसरे ही क्षण उन्हें उड़ाकर ले जा सकती है, ऊष्मा और जल वाष्प की बहुत बड़ी मात्राओं को पृथ्वी के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुंचा देती है, हजारों- लाखों टन धूल को अपने साथ उड़ाकर सैकड़ों किमी. दूर ले जाकर जमा कर देती है। साथ ही वह पेड़ पौधों के बीजों को पूरी पृथ्वी पर फैला देती है, वायुमंडल को हमारे कारखानों से निकलने वाले विषैले धुएं और गैसों से मुक्त कर देती है। वैसे इनके अतिरिक्त भी पवन अनेक विलक्षण काम करती रहती है।
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