अध्यापक त्रिलोक सिंह और लोहार गंगा राम के दंड देने के क्या-क्या ढंग थे?
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जिस समय धनराम तेरह का पहाड़ा नहीं सुना सका तो मास्टर त्रिलोक सिंह ने ज़बान के चाबुक लगाते हुए कहा कि ‘तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें?’ यह सच है कि किताबों की विद्या का ताप लगाने की सामर्थ्य धनराम के पिता की नहीं थी। उन्होंने बचपन में ही अपने पुत्र को धौंकनी फेंकने और सान लगाने के कामों में लगा दिया था वे उसे धीरे-धीरे हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सिखाने लगे। मास्टर जी पढ़ाई करते समय छड़ी से और पिता जी मनमाने औजार-हथौड़ा, छड़, हत्था जो हाथ लगे उससे पीट पीटकर सिखाते थे। इस प्रसंग में किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का जिक्र आया है।
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