अध्याय-एक
थोड़ी-सी धरती पा जाऊँ (कविता)
बहुत दिनों से सोच रहा था,
थोड़ी धरती
पाऊँ।
उस धरती में बाग-बगीचा,
जो हो सके लगाऊँ।।
O
-
डोले।
खिलें फूल-फल चिड़ियाँ बोलें,
प्यारी
खुशबू
ताजी हवा जलाशय में,
अपना हर अंग भिगो ले।।
पाई।
लेकिन एक इंच धरती भी,
कहीं नहीं मिल
एक पेड़ भी नहीं, कहे जो,
मुझको अपना
भाई।।
हैं
।
चिड़ियाँ सब डरती हैं मुझसे,
फल-दुकानों
में
फूल गले में नेताओं के,
दु:ख अरमानों में हैं।।
हो सकता है पास तुम्हारे,
अपनी
कुछ
धरती हो।
फूल-फलों से लदे बगीचे,
और अपनी धरती हो।।
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बहुत अच्छी कविता है
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