अध्ययन का आनंद पर निबंध |Essay on Pleasure of Learning in Hindi
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“अध्ययन का आनंद”
विद्या की महिमा की व्याख्या शास्त्रों में भी की गई है, विद्या के बारे में कहा गया है-"विद्या को न चोर चुरा सकता है न राजा द्वारा छीना जा सकता है विद्या को न भाइयों में बांटा जा सकता है और न ही यह भारी होती है, जो व्यय करने पर लगातार बढ़ती ही जाती है" I विद्या मनुष्य का परम मित्र है, विद्या मनुष्य का छिपा हुआ धन है, विदेश जाने पर विद्या ही मनुष्य का सच्चा साथी होता है।
विद्या मनुष्य का तीसरा नेत्र है। हमें निरंतर अध्ययन करना चाहिए I अध्ययन करने से ही विद्या को हम पूर्ण रूप से जान सकते हैं I हमारा ज्ञान बढ़ता है क्योंकि शास्त्रों में भी कहा गया है-" अनाभ्यासे विषम विद्या" अर्थात अभ्यास न करने पर विद्या जहर बन जाती है। इसलिए हमें निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए।
निरंतर पुस्तके पढ़कर के अपने समय का सदुपयोग करना चाहिए I पुस्तकें हमारी सर्वश्रेष्ठ मित्र हैं। ज्ञान अमर हैं पुस्तकें कुछ वर्ष नहीं अपितु हजारों वर्ष तक मनुष्य का साथ देती हैं। मनुष्य का साथ ही नहीं देती अपितु आवश्यकता पड़ने पर हमारा मार्गदर्शन भी करती हैं । जब हम बिल्कुल अकेले होते हैं कोई काम नहीं हमें दिखाई देता, हमारा मन बहुत व्याकुल सा रहता है, यदि ऐसे समय में हम अलमारी से निकाल कर के कुछ रोचक एवं शिक्षाप्रद पुस्तकें पढें तो हमारी सारी उदासी दूर हो जाती हैं।
अध्ययन के आनंद की कोई तुलना नहीं। इसलिए किसी लेखक ने सच ही कहा है कि-"
पूरा दिन मित्रों के साथ गपशप में बर्बाद करने के बजाय प्रतिदिन केवल एक घंटा अध्ययन में लगा देना कहीं अधिक लाभप्रद है"। वास्तव में अध्ययन की ना तो कोई विशेष आई होती है और ना ही उसका कोई समय निर्धारित होता है।
मनुष्य की चिंतन शक्ति और कार्य क्षमता को बढ़ाता है। अध्ययन डरपोक व्यक्ति में भी शक्ति और निराश व्यक्तियों में आनंद का संचार करता है। अध्ययन के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा है जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम की आवश्यकता होती है उसी तरह दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए अध्ययन की आवश्यकता होती है।
Answer:
मनुष्य को ईश्वर ने सोचने-समझने की शक्ति दी है। उसका सही उपयोग करने के लिए अध्ययन एक सही और श्रेष्ठ साधन है। मानव जीवन को सही प्रकार से जीने के लिए अध्ययन आवश्यक है। अध्ययन द्वारा अल्पकाल में ही दिमाग को उन्नत, विकसित और अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है। पुराने ज़माने की पढ़ाई और आज की पढ़ाई में काफी अंतर है। पुराने जमाने की पढ़ाई में शस्त्रविद्या और शास्त्रविद्या आश्रम में रहकर गुरु की सेवा करके प्राप्त की जाती थी। एक तरह से गुरु के आदेशों का पालन करना ही पढ़ाई थी, परंतु इस ज़माने की पढ़ाई तो बहुत ही अधिक कठिन है।
अधिकांश छात्रों के लिए पढ़ना एक समस्या है। बहुत से छात्रों के लिए तो वह सजा से कम नहीं है। सज़ा नहीं भी समझें तो तपस्या तो वे इसे समझते ही हैं। उनके लिए पढ़ाई ऐसे ही है जैसे गरमी में आग तापना पड़े और जाड़े में बर्फ का पानी पीना पड़े। लेकिन आज भी कुछ छात्र ऐसे हैं जो यह सोचते हैं कि पढ़ने से ही हमारा जीवन बन सकता है। बिना पढ़े न अच्छी नौकरी मिलेगी, न समाज में सम्मान। कुछ विद्यार्थियों की पढ़ाई में अरुचि होती है।
पढ़ाई में अरुचि के कई कारण हो सकते हैं। विद्यार्थियों को जो कुछ पढ़ना पड़ता है उसे वे पहले ही से भारी मानकर चलते हैं। विद्यार्थियों को ऐसा नहीं करना चाहिए। उन्हें अपनी मानसिक अवस्था को अध्ययन के अनुकूल बनाना चाहिए। रुचि पैदा हो जाने पर अध्ययन एक आनंददायी अनुभव बन जाता है।