अधमmहृदय दर्पण नामक ग्रंथ की रचना किसने की(भामह(C) अनायक(देहीरितीक्ति जीवित की भूमिका किसने लिया
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साहित्यदर्पण संस्कृत भाषा में लिखा गया साहित्य विषयक ग्रन्थ है जिसके रचयिता पण्डित विश्वनाथ हैं। विश्वनाथ का समय १४वीं शताब्दी ठहराया जाता है। मम्मट के काव्यप्रकाश के समान ही साहित्यदर्पण भी साहित्यालोचना का एक प्रमुख ग्रन्थ है। काव्य के श्रव्य एवं दृश्य दोनों प्रभेदों के सम्बन्ध में इस ग्रन्थ में विचारों की विस्तृत अभिव्यक्ति हुई है। इसक विभाजन 10 परिच्छेदों में है।
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साहित्य दर्पण 10 परिच्छेदों में विभक्त है:
प्रथम परिच्छेद में काव्य प्रयोजन, लक्षण आदि प्रस्तुत करते हुए ग्रंथकार ने मम्मट के काव्य लक्षण "तददोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुन: क्वापि" का खंडन किया है और अपने द्वारा प्रस्तुत लक्षण वाक्यं रसात्मकं काव्यम् को ही शुद्धतम काव्य लक्षण प्रतिपादित किया है। पूर्वमतखंडन एवं स्वमतस्थापन की यह पुरानी परंपरा है।
द्वितीय परिच्छेद में वाच्य और पद का लक्षण कहने के बाद शब्द की शक्तियों - अभिधा, लक्षणा, तथा व्यंजना का विवेचन और वर्गीकरण किया गया है।
तृतीय परिच्छेद में रस-निष्पत्ति का विवेचन है और रसनिरूपण के साथ-साथ इसी परिच्छेद में नायक-नायिका-भेद पर भी विचार किया गया है।
चतुर्थ परिच्छेद में काव्य के भेद ध्वनिकाव्य और गुणीभूत-व्यंग्यकाव्य आदि का विवेचन है।
पंचम परिच्छेद में ध्वनि-सिद्धांत के विरोधी सभी मतों का तर्कपूर्ण खंडन और इसका समर्थन है।
छठें परिच्छेद में नाट्यशास्त्र से संबन्धित विषयों का प्रतिपादन है। यह परिच्छेद सबसे बड़ा है और इसमें लगभग 300 कारिकाएँ हैं, जबकि सम्पूर्ण ग्रंथ की कारिका संख्या 760 है।
सप्तम परिच्छेद में दोष निरूपण।
अष्टम परिच्छेद में तीन गुणों का विवेचन।
नवम परिच्छेद में वैदर्भी, गौड़ी, पांचाली आदि रीतियों पर विचार किया गया है।
दशम परिच्छेद में अलंकारों का सोदाहरण निरूपण है जिनमें 12 शब्दालंकार, 70 अर्थालंकार और रसवत् आदि कुल 89 अलंकार परिगणित हैं।