Hindi, asked by FlexDeveloperYou, 3 months ago

athihti सदैव देवता नह ं होता ,वह मानव और थोड़े अंशों में राक्षस भी हो सकता है |’
कथन का आशय 50-60 शब्दों में spasht कीष्जए (urgent please

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Answered by Sasmit257
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Explanation:

पशु-पक्षियों से हमें बहुत लाभ होता है गाय भैंस बकरी आदि पशु हमें दूध देते हैं गाय का दूध तो माँ के दूध के

पशु-पक्षियों से हमें बहुत लाभ होता है गाय भैंस बकरी आदि पशु हमें दूध देते हैं गाय का दूध तो माँ के दूध केसमान होता है मुरगी बतख आदि हमें अंडे देती हैं भेंड़ें हमें ऊन देती हैं जानवरों की खाल से भी कई तरह की

पशु-पक्षियों से हमें बहुत लाभ होता है गाय भैंस बकरी आदि पशु हमें दूध देते हैं गाय का दूध तो माँ के दूध केसमान होता है मुरगी बतख आदि हमें अंडे देती हैं भेंड़ें हमें ऊन देती हैं जानवरों की खाल से भी कई तरह कीपोशाकें बनती हैं इनके चमड़े से जूते थैले आदि बनते हैं कुछ देशों में चिड़ियों के पंखों से लोग रजाई तकिए

पशु-पक्षियों से हमें बहुत लाभ होता है गाय भैंस बकरी आदि पशु हमें दूध देते हैं गाय का दूध तो माँ के दूध केसमान होता है मुरगी बतख आदि हमें अंडे देती हैं भेंड़ें हमें ऊन देती हैं जानवरों की खाल से भी कई तरह कीपोशाकें बनती हैं इनके चमड़े से जूते थैले आदि बनते हैं कुछ देशों में चिड़ियों के पंखों से लोग रजाई तकिएआदि तैयार करते हैं। की दूषित व्यवस्था रिश्वत को प्रोत्साहन देती है। अल्प-वेतन में परिवार का व्यय न चलने पर कभी-कभी मन दुर्बलता उत्पन्न हो जाती है और सरकारी नौकर का ध्यान भी अनौतिक साधन रिश्वत की ओर चला जाता है। वह भली-भाँति जानता है कि रिश्वत लेना पाप है, पाप की कमाई फलती-फूलती नहीं फिर भी विवशता और लाचारी में फँस कर वह पाप कर बैठता है। यदि समाज में सबको जीवनयापन के लिए समान अधिकार प्राप्त हो तो रिश्वत जैसे अनैतिक कर्म को स्थान न मिले। खेद का विषय है कि आज हमारी मनोवृत्ति इतनी दूषित हो गई है कि रिश्वत की कमाई को पूरक-पेशा समझा जाने लगा है। समाज को इस भयंकर बीमारी से बचाना चाहिए।

पशु-पक्षियों से हमें बहुत लाभ होता है गाय भैंस बकरी आदि पशु हमें दूध देते हैं गाय का दूध तो माँ के दूध केसमान होता है मुरगी बतख आदि हमें अंडे देती हैं भेंड़ें हमें ऊन देती हैं जानवरों की खाल से भी कई तरह कीपोशाकें बनती हैं इनके चमड़े से जूते थैले आदि बनते हैं कुछ देशों में चिड़ियों के पंखों से लोग रजाई तकिएआदि तैयार करते हैं। की दूषित व्यवस्था रिश्वत को प्रोत्साहन देती है। अल्प-वेतन में परिवार का व्यय न चलने पर कभी-कभी मन दुर्बलता उत्पन्न हो जाती है और सरकारी नौकर का ध्यान भी अनौतिक साधन रिश्वत की ओर चला जाता है। वह भली-भाँति जानता है कि रिश्वत लेना पाप है, पाप की कमाई फलती-फूलती नहीं फिर भी विवशता और लाचारी में फँस कर वह पाप कर बैठता है। यदि समाज में सबको जीवनयापन के लिए समान अधिकार प्राप्त हो तो रिश्वत जैसे अनैतिक कर्म को स्थान न मिले। खेद का विषय है कि आज हमारी मनोवृत्ति इतनी दूषित हो गई है कि रिश्वत की कमाई को पूरक-पेशा समझा जाने लगा है। समाज को इस भयंकर बीमारी से बचाना चाहिए।गुरुक)माता का अंचल पाठ में माता-वपता व बच्चों के बीच में जो प्रेम हदिाया गया है ऐसा प्रेम वतचमान समय में

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