atishyokti alankar kya hota hai
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अतिशयोक्ति अलंकार
जब काव्य में उपमेय को उपमान बिल्कुल ढक लेता है। यानी किसी बात को इतना बढ़ा चढ़ाकर वर्णन किया जाए और लोक सीमा से बाहर हो जाए। तो उसे अतिशयोक्ति अलंकार कहते हैं।
जैसे
- हनुमान की पूंछ में लग ना पाई आग, श्रृंगर लंका जल गई, गए निशाचर भाग।
- तुम्हारी वह दंतुरित मुस्कान , मृतकों में डाल देगी जान।
- जो तनिक हवा से बाग हिली लेकर सवार उड़ जाता था, राणा की पुतली फिरी नहीं तब तक चेतक मुड़ जाता था।
- बांधा था विधु को किसने इन काली जंजीरों से, मणीवाले फणियों का मुख कर्मों भरा है हिरो से।
- विधु -चांद , मुख ।
- श्रृखल - सिकल , वेणी , चोटी ।
- मणिधर - सांप , मांग ।
- कीमती पत्थर , सिंदूर
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अतिशयोक्ति विशेषणों का उपयोग किसी वस्तु का वर्णन करने के लिए किया जाता है जो किसी गुणवत्ता की ऊपरी या निचली सीमा पर होती है (सबसे ऊँची, सबसे छोटी, सबसे तेज़, सबसे ऊँची)। उनका उपयोग उन वाक्यों में किया जाता है जहां किसी विषय की तुलना वस्तुओं के समूह से की जाती है। संज्ञा (विषय) (add) क्रिया द अतिज्ञानी विशेषण संज्ञा (वस्तु)।
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