Hindi, asked by Argha3252, 7 months ago

Atmanirbharta safalta ki kunji hai vichar vistar

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Answered by pooja851144
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स्वावलम्बन अथवा आत्मनिर्भरता दोनों का वास्तविक अर्थ एक ही है – अपने सहारे रहना अर्थात अपने आप पर निर्भर रहना | ये दोनों शब्द स्वय परिश्रम करके, सब प्रकार के दुःख –कष्ट श कर भी अपने पैरो पर खड़े रहने की शिक्षा और प्रेरणा देने वाले शब्द है | यह हमारी विजय का प्रथम सोपान है | इस पर चढकर हम गन्तव्य-पथ पर पहुँच पाते है | इसके द्वारा ही हम सृष्टि के कण-कण को वश में कर लेते है | गांधी जी ने कहा है कि व्ही व्यक्ति सबसे अधिक दुःखी है जो दुसरो पर निर्भर रहता है | मनुस्मृति में कहा गया है – जो व्यक्ति बैठा है उसका भाग्य भी बैठा है और जो व्यक्ति सोता है , उसका भाग्य भी सो जाता है, परन्तु जो व्यक्ति अपना कार्य स्वय करता है, केवल उसी का भाग्य उसके हाथ में होता है | अत : सांसारिक दुखो से मुक्ति पाने की रामबाण दवा है – स्वावलम्बन |स्वावलम्बी या आत्मनिर्भर व्यकित ही सही अर्थो में जान पाता है कि संसार में दुःख पीड़ा क्या होते है तथा सुख- सुविधा का क्या मूल्य एव महत्त्व हुआ करता है | वह ही समझ सकता है कि मान अपमान किसे कहते है ? अपमान की पीड़ा क्या होती है ? परावलम्बी व्यक्ति को तो हमेशा मान-अपमान की चिन्ता त्याग कर , व्यक्ति होते हुए भी व्यक्तित्वहीन बनकर जीवन गुजार देना पड़ता है | एक स्वतंत्र व स्वावलम्बी व्यक्ति ही मुक्तभाव से सोच-विचार कर के उचित कदम उठा सकता है | उसके द्वारा किए गे परिश्रम से बहने वाले पसीने की प्रत्येक बूंद मोती के समान बहुमूल्य होती है | स्वावलम्बन हमारी जीवन – नौका की पतवार है | यह ही हमारा पथ – प्रदर्शन है | इस कारण से मानव – जीवन में इसकी अत्यन्त महत्ता है |

विश्व के इतिहास में अनेको ऐसे उदाहरण भरे पड़े है जिन्होंने स्वावलम्बन से ही जीवन की ऊचइयो को छुआ था | अब्राहम लिंकन स्वावलम्बन से ही अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे | मैकड़ानल एक श्रमिक से इंग्लैण्ड के प्रधानमत्री बने थे | फोर्ड इसी के बल पर विश्व के सबसे धनी व्यक्ति बने थे | भारतीय इतिहास में भी शंकराचार्य , ईश्वरचन्द्र विद्दासागर, स्वामी रामतीर्थ , राष्ट्रपति गांधी जी , एकलव्य लाल भुदुर शास्त्री आदि महापुरुषों के स्वावलम्बन शक्ति के उदाहरण भरे पड़े है |आज का व्यक्ति अधिक – से-अधिक धन तथा सुख प्राप्त करना तो चाहता है पर वह दुसरो को लुट – खसोट कर प्राप्त करना चाहता है अपने परिश्रम और स्वय पर विश्वास व निष्ठा रखकर नही | इसीलिए वह स्वतंत्र होकर भी परतंत्र और दुखी है | इस स्थिति से छुटकारा पाने का एक ही उपाय है और वह है स्वावलम्बी एव आत्मनिर्भर बनना |

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