अड़ी, लड़ी, सड़ी, कड़ी, तड़ी, बड़ी, खड़ी, पड़ी, झड़ी
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उत्तर
खत्म कर दो इंतजार की घड़ी ।
तरस रही है चातक की चोंच,
मुरझाकर सब कलियां हैं पड़ी ।।
रहे कृषक भाग्य को है नोच,
आप में उनकी नज़र है गड़ी ।
व्याकुलता से सब रहे हैं सोच,
तुम हो उनके जीवन की जड़ी ।।
प्राणियों का कुण्ठित दाम्पत्य रोच,
डगमगा रही है उनके प्रेम की कड़ी ।
खगों ने दिया अब गर्दनों को दबोच,
तुम तृप्त कर कर दो गर्दनों को खड़ी ।।
बरस जाओ ओ प्यारे मेघ!
खत्म कर दो इंतज़ार की घड़ी ।।1।।
अब विघ्नहर्ता बनकर तुम,
घुमा दो सुखद जादुई छड़ी ।
तृप्ति दे दो सबको तुम,
सामर्थ्य है आप में बहुत बड़ी ।।
प्यारे लगते हो सबको तुम,
कोकिल है आह्वान को अड़ी ।
मात्र क्षितिज पर आए तुम,
देखकर चहककर चिड़िया उड़ी ।।
सबकी पुकार सुन लो अब तुम,
लगा दो जमकर वर्षा की झड़ी ।
बरस जाओ ओ प्यारे मेघ!
खत्म कर दो इंतज़ार की घड़ी ।।2।।
ओ प्यारे मेघ! घुंघराले केश से,
आ गए तुम उमड़-गरज ।
ओ जगत पालक! निराले कृष्ण से,
सुनली आपने विकल अरज ।।
ओ इन्द्र के दूत! तालाब किये दर्पण से,
निभाया आपने अपना फ़र्ज़ ।
ओ दामिनी पीव! अपने दम से,
बरसे आप हिमालय की तरज ।।
ओ क्षितिज सूत!घटोत्गछ से,
धरा का आपने चुकाया कर्ज़ ।
बरस जाओ ओ प्यारे मेघ!
ख़त्म कर दो इंतज़ार की घड़ी ।।3।।