autobiography of a chair in hindi
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मैं हूँ एक लकड़ी की कुर्सी जो बिल्कुल टूटी-फूटी है। मुझे काफी सालों तक इस्तमाल किया गया था। आइये, आपको अपनी कहानी बताती हूँ।
मैं रामु नाम के लकड़हारे की दुकान पर थी। जब एक परिवार आया। वह अपने नए घर के लिए कुछ चीज़ें लेने आये थे जैसे अलमारी, मज़ आदि। तब उनके बेटे,रवि की नज़र मुझपे पड़ी। मैं अलग-अलग तरीके की डिज़ाइन से सजाई गई थी, तो उसे मैं पसंद आ गई। उसने मुझे खरीद लिया।
जैसे ही वह मुझे लेकर घर पहुंचे, रवि मुझे अपने कमरे में ले गया और एक सुंदर से मेज़ के बगल में रख दिया।
पहले तो उसने मुझे बड़ा ध्यान दिया। मुझपर बैठकर अपना सारा काम करता था, पर कुछ महीनों बाद उसने मुझे बिल्कुल भी ध्यान नही दिया। एक दिन वोह मुझपर कूद-कूद कर खेल रहा था। तब उसका मुझपर ज्यादा वज़न पड़ा और मेरा पैर टूट गया।
मुझे बहुत दर्द हुआ। रवि मुझे कचरे की पेटी में फेंकने जा रहा था। मैं बहुत चिल्लाया। पर अपसोस मुझे कोई सुन न सका।
न चाहते हुए भी मुझे फेंक दिया रवि ने। अब मैं कचरे के ढेर के नीचे पड़ी हूँ।
मैं रामु नाम के लकड़हारे की दुकान पर थी। जब एक परिवार आया। वह अपने नए घर के लिए कुछ चीज़ें लेने आये थे जैसे अलमारी, मज़ आदि। तब उनके बेटे,रवि की नज़र मुझपे पड़ी। मैं अलग-अलग तरीके की डिज़ाइन से सजाई गई थी, तो उसे मैं पसंद आ गई। उसने मुझे खरीद लिया।
जैसे ही वह मुझे लेकर घर पहुंचे, रवि मुझे अपने कमरे में ले गया और एक सुंदर से मेज़ के बगल में रख दिया।
पहले तो उसने मुझे बड़ा ध्यान दिया। मुझपर बैठकर अपना सारा काम करता था, पर कुछ महीनों बाद उसने मुझे बिल्कुल भी ध्यान नही दिया। एक दिन वोह मुझपर कूद-कूद कर खेल रहा था। तब उसका मुझपर ज्यादा वज़न पड़ा और मेरा पैर टूट गया।
मुझे बहुत दर्द हुआ। रवि मुझे कचरे की पेटी में फेंकने जा रहा था। मैं बहुत चिल्लाया। पर अपसोस मुझे कोई सुन न सका।
न चाहते हुए भी मुझे फेंक दिया रवि ने। अब मैं कचरे के ढेर के नीचे पड़ी हूँ।
Riya1122333:
hiii
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