Hindi, asked by amanbenipal2018, 1 year ago

Autobiography of a stone

Answers

Answered by amankumaraman11
6
मैं अयोध्या के एक कोने में पड़ा हुआ एक पत्थर हूं। एक दर्द को आपसे साझा करने आया हूं। आप भी कहेंगे कि भला पत्थर को भी दर्द होता है कभी। उल्टा कठोरता के लिए ही पत्थर दिल की मिसाल दी जाती है। परंतु आज मेरी व्यथा सुनकर आपको यकीन हो जाएगा कि पत्थर को भी दर्द होता है। पूरे पच्चीस बरस से इस दर्द को झेल रहा हूं।

दरअसल मेरा यह दुर्भाग्य कभी सौभाग्य का प्रतीक हुआ करता था। प्रभु श्रीराम के जन्म स्थली अयोध्या नगरी के पावन सरयू तट पर मैं पुण्य लाभ लेता था। न कोई भय, न कोई चिंता। अमन चैन, प्रभु की भक्ति, और क्या चाहिए। लेकिन करीब 25 बरस पहले नजर लग गई मुझे और मेरी अयोध्या को। हो हल्ला हुआ, भीड़ आई और ढांचे को तोड़कर चलती बनी। इस ढांचे के टूटने के बाद मेरे कई साथी पत्थर रो पड़े। मैने पूछा तो बोले कि हमारा तो अस्तित्व ही एकता में था। लेकिन अब हमारा क्या होगा। मैने ढांढस बंधाते हुए कहा कि चिंता मत करो मित्र जिन्होंने यह ढांचा गिराया है वह कह कर गए हैं कि एक नया मंदिर बनेगा। हम पत्थरों का वजूद तो इमारत बनाने के लिए ही है। तुम्हारा फिर इस्तेमाल होगा और इस बार तो प्रभु का मंदिर बनना है सो मैं भी अपने संपूर्ण अस्तित्व को यहां समर्पित करके आपके साथ यहां मंदिर में लगाया जाऊंगा।

मेरी सकारात्मक बात सुनकर मेरा साथी पत्थर शांत हुआ और अपने हृदय को और कड़ा करके हमारे साथ आने को भी तैयार हो गया। उस दिन के बाद कुछ दिन, कुछ महीने, कुछ साल गुजरते गए। आसपास से छैनी हथौड़े गुजरते तो कुछ उम्मीद जागती। लेकिन तभी पुलिसिया बूटों के तले हमे कुचल दिया जाता। हम फिर सहमे से पड़े रह जाते। इसी उम्मीद में कि शायद कभी न कभी हम पत्थरों की किस्मत जागेगी। उधर ढांचे से गिरे जिन पत्थरों को मैने सांत्वना दी थी उन्होंने भी ताने देने शुरू कर दिए थे। मेरे पास कोई जवाब न होता।

इधर हमारे आराध्य रामलला सर्दी, गर्मी, बरसात में भी टाट में हैं उधर मैं खुद को अर्पण करने की भावना के बाद भी असहाय था। मुझसे सौभाग्यशाली तो वह छोटी गिलहरी थी जो प्रभु के राम सेतु निर्माण में सहायक होकर उनके आशीष और स्नेह की भागीदार बनी। खैर जिस अयोध्या में मंदिर के निर्माण कार्य की ठक ठक की आवाजों का भरोसा दिलाया गया था वहां सिर्फ जवानों के बूटों की टकटक सुनाई दे रही है। बीते 25 सालों में जो बच्चे थे वे जवान हो गए, जो जवान थे वे बूढ़े। पर एक पीढ़ी बदलने के बाद भी राम जी के मंदिर का सपना अभी जवान है। इतने सालों में देश, विदेश में मेरे चर्चे रहे। लेकिन 25 सालों का दर्द बिना किसी लाग लपेट कर आपसे साझा कर रहा हूं। उम्मीद मेरी भी थी कि प्रभु श्री राम का भव्य मंदिर बने और मैं इस नींव का पत्थर बनने का सौभाग्य प्राप्त करुं। यह दिन कब आएगा नहीं पता लेकिन ढांचा टूटने के बाद और मंदिर निर्माण की संभावना के इन पच्चीस सालों में हमने देश तोड़ दिया। हम अब तक मंदिर की नींव नहीं डाल सके लेकिन देश के लोगों के बीच एक दीवार जरूर खड़ी कर दी। इस मामले में मैं कहीं ज्यादा खुशनसीब हूं जो प्रभु के मंदिर में तो अब तक काम नहीं आ सका लेकिन मुझे गर्व है कि मैं ऐसी किसी दीवार का हिस्सा नहीं जो देशवासियों को आपस में विभाजित कर दे।
Similar questions